Thursday, February 21, 2008

मुझ से गुनाह हो गया

जिन्दगी मे जब कभी , मुझ से गुनाह हो गया
 हर शख्स इक इन्साफ पसन्द, शहँशाह हो गया
 बाप का साया जो मेरे सर से उठ गया तो फिर
देखो जिसे मेरे लिये, वो ही जहाँपनाह हो गया
 माँ की नजरों में सदा मेरा स्याह भी सफेद था
 बन्द वो आँखे हुई,और सफेद भी स्याह हो गया
 मेरी तबाही से तरक्की सबकी इतनी हो गयी
फकीर तक मेरे लिये कोई बादशाह हो गया
 मुँह लगा बोतल से पीते थे ये कल की बात है
 अब तो, बोतल देखना तक, भी गुनाह हो गया
 सजा का फैसला तो पहले ही से तेरे मन में है
क्यों पूछना कब, कैसे और क्या गुनाह हो गया
 जीत ही लेता मुकदमा तुझ से मै ये प्यार का
 पर दिल ही मेरा, देकर दगा, तेरा गवाह हो गया

6 comments:

नीरज गोस्वामी said...

भाई क्रिशन जी
लाजवाब ग़ज़ल...बधाई.
जिन्दगी मे जब कभी , मुझ से गुनाह हो गया
हर शख्स इक इन्साफ पसन्द, शहँशाह हो गया
मुँह लगा बोतल से पीते थे ये कल की बात है
अब तो, बोतल देखना तक, भी गुनाह हो गया
वाह ...वा...
नीरज

Krishan lal "krishan" said...

नीरज भाई,
गजल की प्रशसा के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
आप जैसे एक मंजे हुए अव माने हुए गजल लेखक से इस प्रकार की टिप्प्णी प्रेरणा का काम करती है । मै तहे दिल से आप का आभारी हूँ

Keerti Vaidya said...

ek aur khoobsurat gazal....

bhut khoob

Krishan lal "krishan" said...

Kirti ji,
Many many thanks for finding the time for going through the Gazal and not only appreciating the same rather conveying your views through comments .I can fully understand how busy a person at your level(senior managerial level) could be.
Please continue encouraging in future also as and when convenient to you.
My heart felt thanks again.

Anonymous said...

bahut khubsurat

Krishan lal "krishan" said...

Mehek ji,

aapka bahut bahut shukriya for long awaited comments.

Mehek, could I remind you that aaj aapke comments aadhe adhure hai . Usme 'klal sir ji' missing hai.

Please continue encouraging as and when convenient to you.

I also wish you write something on Mrigtrishna and send it to Kavyapallavan of Hindiyugam. Waiting for a beautiful poem from you.

Thanks again and sorry for anything of not your liking.