इतिहास अपने आप को इक बार फिर दोहरा गया
वो मुस्कराये थे आदतन मुझे प्यार का भ्रम छा गया
अपना समझने की उसे , जो भूल हम से हो गयी
उस भूल की सजा मैं जुर्म से भी ज्यादा पा गया
किसका प्यार सच्चा किसका झूठा था अब क्या कहें
जो भी मिला बस गरज़ तक रिश्ता हमसे निभा गया
जो जान तक देने की , हमसे , था रोज़ उठवाता कसम
हमने कुछ माँगा तो , गठरी , समेट के वो चला गया
इक अपनी चीज के सिवा, नही कोई भी अपना यहाँ
आया समझ हर रिश्ता जब, मुँह मोड़ता ही चला गया
अच्छा था मुस्करा के यूँ, हम से ना वो मिलता कभी
मुस्कराना उसका, दिल में, बेवजह ही प्यार जगा गया
ऐसी कहानी प्यार की, तूने क्यों लिखी, ए मेरे खुदा
अन्त जिस कहानी का, शुरू होने से पहले आ गया
उम्मीद थी जिससे कि जख्मो पे लगायेगा मरहम
वो ही जख्मों पर मेरे, एक और जख्म लगा गया
वो रोज कहते थे , कविता , हम पे भी, लिखो कोई
होठो से, उसके गालो पे, मै कविता लिखके आ गया
वो मुस्कराये थे आदतन मुझे प्यार का भ्रम छा गया
अपना समझने की उसे , जो भूल हम से हो गयी
उस भूल की सजा मैं जुर्म से भी ज्यादा पा गया
किसका प्यार सच्चा किसका झूठा था अब क्या कहें
जो भी मिला बस गरज़ तक रिश्ता हमसे निभा गया
जो जान तक देने की , हमसे , था रोज़ उठवाता कसम
हमने कुछ माँगा तो , गठरी , समेट के वो चला गया
इक अपनी चीज के सिवा, नही कोई भी अपना यहाँ
आया समझ हर रिश्ता जब, मुँह मोड़ता ही चला गया
अच्छा था मुस्करा के यूँ, हम से ना वो मिलता कभी
मुस्कराना उसका, दिल में, बेवजह ही प्यार जगा गया
ऐसी कहानी प्यार की, तूने क्यों लिखी, ए मेरे खुदा
अन्त जिस कहानी का, शुरू होने से पहले आ गया
उम्मीद थी जिससे कि जख्मो पे लगायेगा मरहम
वो ही जख्मों पर मेरे, एक और जख्म लगा गया
वो रोज कहते थे , कविता , हम पे भी, लिखो कोई
होठो से, उसके गालो पे, मै कविता लिखके आ गया
10 comments:
दर्पण के किरचें ज्यादा गहरी चुभी हुइ लगती है.
कथ्य अच्छा बन पडा है, और भी तो होंगे जरा नज़र करवाइये.
आभारी रहूंगा.
नजर तो तब करवाये जब आप अपना कुछ नाम पता बतायें
मेरे दिल का हाल पूछते हो और अपना नाम तक हो छुपाये
कथ्य की प्रशंसा के लिये धन्यवाद
बेहतरीन ग़ज़ल है. आनंद आया. और पढ़ना चाहेंगे.
रवि रतलामी जी,
सर्वप्रथम आपका स्वागत है मेरे इस ब्लाग पर्।
गजल की खुले दिल से प्रशंसा करने के लिये धन्य्वाद ।
आप चाहे तो पहले की पोस्ट की गयी गजले
पढ़ सकते है या कल का इन्तजार करें
पुन: धन्यवाद।
उम्दा है जनाब..बहुत बेहतरीन.
उड़न तशतरी जी
धन्यवाद गजल की सरहाना के लिये
ये कहानी प्यार की, तूने क्यों लिखी, ए मेरे खुदा
अन्त जिस कहानी का, शुरू होने से पहले आ गया
bahut behtarin sher,gazal bhi bahut hi sundar
Mehek ji,
Believe it or not I knew if ever you come on my blog and read this Ghazal then it is this sher you would like the most.
Thanks for appreciating the ghazal as a whole.
किसका प्यार सच्चा किसका झूठा था अब क्या कहें
जो भी मिला बस गरज़ तक रिश्ता हमसे निभा गया
बहुत उम्दा, पढ़कर आनंद आ गया,
Neeraj ji
I am really thankful for appreciating the Ghazal. The best thing about this ghazal has been that different sher have been appreciated by different readers thereby implying that almost every sher has been liked.
Thanks again
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