Thursday, September 25, 2008

मेरे जीवन में तुम

तुम मेरी पहली कविता हो जो कोरे मन पे मैने लिखी
 जो ना कागज़ पे उतर सकी ना होठो पे आ पाई कभी
 तुम हो मेरी पहली रचना जो मन ही मन में रच डाली
जो मन ही मन तो गाता रहा पर तुम को सुना पाया ना कभी
 तुम वो पहली तस्वीर हो जिसका अक्स उतारा था दिल ने
 पर दिल के शीशे से बाहर मै जिस को ला पाया ना कभी
 तुम वो पहली कली हो जो मेरे मन को थी लगी भली
 पर जब तक मै घर ला पाता किसी और के हार मे गुंथी मिली
 तुम वो पहला स्वप्न हो जिसको जागती आँखो ने देखा
जो स्वप्न हकीकत बन ना सका और जीत गयी भाग्य रेखा
 यूँ देखो तो लगता हे मेरे जीवन मे तुम कहीं नही
पर सच तो ये है तुम मेरे ह्र्दय मे हर पल बसी रही
 गंगा तो दिखाई दी सब को यमुना भी दिखाई देती रही
 मेरे जीवन संगम में पर तुम सदा सरस्वती बन के बही
 माना तब भाग्य जीत गया पर मै अब तक भी नही हारा
 इक रोज़ तुम्हे पा ही लूगा अभी जन्म कहा बीता सारा
 तुम आज भी पहली कविता हो तुम आज भी हो पहली रचना
 आखों में जो अब तक बसा है वो तुम आज भी हो पहला सपना
 तुम आज भी पहली कली सी मेरा मन आँगन महकाती हो
हो आज भी तुम वो मूरत जो मेरे मन में पूजी जाती हो
 तुम आज भी मेरा प्यार हो जिस्पे तन मन वार मै सकता हूँ
और प्यार तेरा पाने को कर हर सीमा पार मै सकता हूं
 तुम पहली कविता हो मेरी तो अन्तिम गीत भी तुम बनना
 हो कोई जन्म मुझे तेरे सिवा नही और किसी को भी चुनना

2 comments:

manvinder bhimber said...

तुम मेरी पहली कविता हो जो कोरे मन पे मैने लिखीजो ना कागज़ पे उतर सकी ना होठो पे आ पाई कभी
तुम हो मेरी पहली रचना जो मन ही मन में रच डाली
जो मन ही मन तो गाता रहा पर तुम को सुना पाया ना कभी
kitane achche or sachche bhaaw hai...

Anwar Qureshi said...

बहुत अच्छा लिखा है आप ने ..बधाई