Wednesday, October 15, 2008

सपनो मे बुला पाऊं तुम को इतना तो दो अधिकार प्रिये

माना कि तुम खफा हो मुझसे, लेकिन खुद पे कुछ रहम करो
 वर्षा ॠतु मे मिट जाती है वर्षो की तकरार प्रिये
 ऐसी ही शरमाती रही तो मै क्या तुम भी पछताओगी
शरम शरम मे मत कर लेना वर्षा ॠतु बेकार प्रिये
 मुझ को तुम से प्यार बहुत है मैने सौ सौ बार कहा है
मेघ साक्षी रख के तुम भी कह दो ये इक बार प्रिये
 सावन के मौसम मे लगा हर ओर उमंगो का मेला
आओ हम भी दबी उमंगे कर डाले साकार प्रिये
 सोच सोच में बिता दिए है कितने सावन तुमने
 अब तक मत सोचो जो भी करना है कर डालो इस बार प्रिय 
डर के जिये तो खाक जिये ऐसा जीना भी क्या जीना
 इस पार बुलाता रहूँ तुम्हे तुम सदा रहो उस पार प्रिये
 मुझ बिन जीना तेर जीना हो सकता हॆ कुछ बेहतर हो
 तुम बिन जीना मेरा जीना हुआ बहुत दुश्वार प्रिये
 तेरी सोच तक अच्छा नही लेकिन तेरा दीवाना हूं
ऐसा वैसा जैसा भी हूं अब कर भी लो स्वीकार प्रिये
 तुम ना झूलो बांहो मे मेरी ना मुझ को अंगीकार करो
सपनो मे बुला पांऊ तुमको इतना तो दो अधिकार प्रिये
 चलो छोडो हटाओ बात मेरी नही तुम से कुछ होने वाला
 घर जाओ गीले कपडे बदलो कौफी पीकर आराम करो
तुम बुरी तरह से भीगी हो, हो जाओ ना तुम बीमार प्रिये

3 comments:

Udan Tashtari said...

वाह!!

बहुत सुन्दर!

शोभा said...

वाह! बहुत सुंदर.

Krishan lal "krishan" said...

samir ji aur shobha ji
bahut bahut shukriya protsahan ke liye