शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Saturday, January 10, 2009
मेरे खुदा आखो पे उसके बान्ध पटटी इस तरह
मेरी दुआओं को खुदा इतना तो असर हो जाये
या उसे तकलीफ न हो य मुझको खबर हो जाये
वो ना आये है ना आयेगे जरूरत पे मेरी
मेरे खुदा कुछ ऐसा कर मुझ को ही सब्र हो जाये
मेरी जरूरत जान वो अन्जान आज बन रहा है
क्या पता लेकिन उसे कल मेरी फिक्र हो जाये
तब यार की शर्मिन्दगी मुझ से ना सही जायेगी
मेरी जरूरत यार बिन या रब ना पूरी हो जाए
पार उतरना उसका मुश्किल भी है ना मुमकिन भी है
यार मेरा वो हैं जो पानी को जो देख डर जाए
मेरे खुदा आखो पे उसके बान्ध पटटी इस तरह
पानी जमींन सा दिखे और पार वो उतर जाये
तेरी ना सुनने की तो आदत रही है बरसों से
डर है तो बस इतना अब तूँ हां कहीं ना कर जाये
मैं जानता हूँ तूँ मेरा हमसफर बनेगा जरूर
बस डर है कि तब तक कहीँ खत्म सफर ना हो जाये
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3 comments:
bahot khub sahab behad umda likha hai aapne ...dhero badhai kubul karen ..........
arsh
बहोत खूब लिखा है अपने साहब...
अर्श
बहुत दिनों बाद दिखे-सब ठीक तो है?
नववर्ष शुभ हो, अनेक शुभकामनाऐं.
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