Saturday, April 11, 2009

वो आये मेरी दुनिया मे लेकिन ये देखो आये कब

जिन्दगी के मायने तब समझ आने लगे
 चाहने वाले मेरे जब मुझ को ठुकराने लगे
 देखता हू आईना तो ऐसा लगता है मुझे
 सीने मे द्फन गम हैं चेहरे पे नजर आने लगे
 हमने जिन हाथों मे अक्सर फूल थमाये कभी
 वो हाथ ही सर पे मेरे पत्थर हैं बरसाने लगे
 देखा जब सीने मे नये जख्मो की जगह नहीं
 दोस्त कान्टो से पुराने जख्म सहलाने लगे
 ना कहें उसे बेवफा तो क्या कहें तू ही बता
 जब दोस्त मेरा दुश्मनी की रस्म निभाने लगें
 जिनको उंगली पकड़ के चलना सिखाया था कभी
मार के टंगडी मुझे अब वो ही गिराने लगे
 वो उग़लियों पे भूल मेरी गिन रहा था बार बार
 शर्मिन्दा हुआ जब हम गुनाह उसके गिनवाने लगे
 वो आये मेरी दुनिया मे लेकिन ये देखो आये कब
 जब छोड सारी दुनिया हम दुनिया से जाने लगे
 उम्र भर मौका था मनने और मनाने का सनम
 क्यों उम्र खत्म होने पे तुम हमको मनाने लगे
 इक मुस्कराहट से तेरी मिट सकते थे मेरे गिले
 क्यों बेवजह फिर आप आँसू आँखो मे लाने लगे
 जिन्दगी भर जो मुझे तकलीफ देकर खुश रहे
मरने पे मेरे वो ही ज्यादा आँसू बहाने लगे

5 comments:

निर्मला कपिला said...

bahut hi sunder bhavavyakti hai

"अर्श" said...

ACHHI GAZAL AUR SHE'R SABHI MUKAMMAL..


BADHAYEE,,,


ARSH

Krishan lal "krishan" said...

bahut bahut shukriya aap ka rachna ko pasand karne ke liye

आशीष कुमार 'अंशु' said...

'जिनको उंगली पकड़ के चलना सिखाया था कभी
मार के टंगडी मुझे अब वो ही गिराने लगे.'

Wah-Wah

समयचक्र said...

apki post ki charcha sirf mere blaag me
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : जो पैरो में पहिनने की चीज थी अब आन बान और शान की प्रतीक मानी जाने लगी है