Tuesday, August 18, 2009

इसकी तो आदत है देती पीछे से आवाज है

मान लूँ कैसे अज़र है या अमर है आत्मा
जब देखता हूँ हर कहीं हर रोज़ मरती आत्मा

 मार भी ना पाये तो इसको सुलाये रख सदा
जागते ही ये दुखी तुझ को करेगी आत्मा

सीख सकता है तो कुछ इन बड़े लोगो से सीख
 ताउम्र कौमा मे पड़ी रहती है जिन की आत्मा

ये कहीं का भी ना छोड़ेगी तुझे संसार मे
 जितनी जल्दी हो सके तूँ आत्मा को मार दे

 पांव मे बैठा है क्या पहने हुये तू बेड़ीया
 काट बेड़ी आत्मा की कदमों को रफतार दे

 देखना पछतायेगा और रोयेगा तू ज़ार ज़ार
 उतरा आत्मा का जिस भी दिन चढा बुखार

 ये इसकी तो आदत है देती पीछे से आवाज है
 आगे बढना है तो हर आवाज इसकी नकार दे

 फिर ना कहना मैने पहले तुमको चेताया नहीं
 इससे पहले ये तुम्हें मारे तूं इस को मार दे

1 comment:

RAJNISH PARIHAR said...

वैसे भी आत्मा आजकल बची ही कितने लोगों में है?