Thursday, April 27, 2017

तेरा मरीज़ए ए इश्क तो प्यारे कल मरा कि आज मरा

मन भी है कुछ बोझिल बोझिल तन भी है कुछ थका थका
उम्मीदे  है  बिखरी बिखरी हर सपना कुछ  टूटा टूटा

साँसे भी कुछ रुकी रुकी है धड़कन भी है  धीमी धीमी
होंठो से  मुस्कान है गायब आँखों में है पानी भरा

फिर भी तेरे प्यार में जाने कौन सी ऎसी कशिश है दोस्त
हर रोज़ नयी  उम्मीद है बंधती  हर रोज़ है दिखता सपना  नया

अब तो जी करता है कह दू नही चाहिए तुझ से कुछ भी
तेरा माल तो  पहले से ही लगता है सब   बिका हुआ

 मान लिया तुम दवा भी दोगे  लेकिन जानू दोगे  कब
तेरा मरीज़ए ए  इश्क तो प्यारे कल मरा कि  आज मरा

अक्ल है  कहती बढ़ती उम्र में  थोड़ा संजीदा हो जाओ
मन कहता है कर  डालो जो नहीं उम्र भर पहले किया

खेल खत्म होने से पहले जो खेलना  है  वो सब खेलो
खेल खत्म  होने में यारा थोड़ा ही वक्त  है  बचा हुआ




















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