कल
एक सज्जन मेरे घर आये
बोले तुम्हारी मदद की दरकार है
मेरे पास एक कविता तैयार है
बड़ी मुश्किल से लिख पाया हूँ
कहीं छपवा दो इस लिये तुम्हारे पास आया हूँ
मैने पूछा ये कविता लिखने की बात तुम्हारे दिमाग में कैसे आई
बोला बात इतनी है भाई
मैने इन कवियों के लिये कविता है बनाई
तुम चाहो तो इसे तुकबन्दी कह सकते हो
लेकिन इसे छपवा दो मेरे भाई
ये मेरे भले बुरे की अकारण सोचते रहते हैं
मैं चाहुँ ना चाहुँ मेरा मार्गदर्शन करने मे लगे रह्ते है
ना चैन से रहने देते है ना खुद रहते है
अपना समय लिख कर और मेरा पढने मे व्यर्थ करते है
शायद मेरी ये कविता पढ कर इनकी समझ में आये
कि सुखी जीवन का एक ही है उपाय
कोई किसी के जीवन मे टाँग ना अड़ाये
बस इन से मुझे इतना ही है कहना
कि ये हमें हमारे हाल पे छोड़ दें
और अपनी कविताऔ का रुख हमारी ओर से हटा, अपनी ओर मोड़ लें
माना कि इन्हें लिखना आता है
पर इससे इनको
दूसरो पर टीका टिप्प्णी का अधिकार
कहाँ से मिल जाता है
सच मानो हम इन से बेहतर ही रहते हैं
और वो सब पहले से ही जानते है जो ये कहते हैं
मैने कहा मेरी मानो तुम अपने घर जाओ
बेहतर है ये कविता ना छपवाओ
ये कवि सिर्फ कहना जानते है
सुनना इन की आदत में नही
इन्हें कुछ भी कहो तो बुरा मानते हैं
ये तो दूसरों को सीख देना ही अपन धर्म मानते हैं
ये और बात है कि ये खुद कितना जानते हैं
इनका ,समझदारी से, बस इतना ही है नाता
इन्हें अपने अलावा कोई समझदार नज़र नहीं आता
क्यों ततैयों के छत्ते मे हाथ देते हो
इनको छोड़ो "आम आदमी" के बारे मे लिखो
अगर कुछ लिख लेते हो
बात उसकी समझ में आई
खुद उठा , अपनी कविता उठाई
लेकिन जब उसने पीठ घुमाई
मैने कहा ये तो बताते जाओ
तुम कौन हो भाई
मेरी ओर बिन देखे बोला
"आम आदमी"
एक सज्जन मेरे घर आये
बोले तुम्हारी मदद की दरकार है
मेरे पास एक कविता तैयार है
बड़ी मुश्किल से लिख पाया हूँ
कहीं छपवा दो इस लिये तुम्हारे पास आया हूँ
मैने पूछा ये कविता लिखने की बात तुम्हारे दिमाग में कैसे आई
बोला बात इतनी है भाई
मैने इन कवियों के लिये कविता है बनाई
तुम चाहो तो इसे तुकबन्दी कह सकते हो
लेकिन इसे छपवा दो मेरे भाई
ये मेरे भले बुरे की अकारण सोचते रहते हैं
मैं चाहुँ ना चाहुँ मेरा मार्गदर्शन करने मे लगे रह्ते है
ना चैन से रहने देते है ना खुद रहते है
अपना समय लिख कर और मेरा पढने मे व्यर्थ करते है
शायद मेरी ये कविता पढ कर इनकी समझ में आये
कि सुखी जीवन का एक ही है उपाय
कोई किसी के जीवन मे टाँग ना अड़ाये
बस इन से मुझे इतना ही है कहना
कि ये हमें हमारे हाल पे छोड़ दें
और अपनी कविताऔ का रुख हमारी ओर से हटा, अपनी ओर मोड़ लें
माना कि इन्हें लिखना आता है
पर इससे इनको
दूसरो पर टीका टिप्प्णी का अधिकार
कहाँ से मिल जाता है
सच मानो हम इन से बेहतर ही रहते हैं
और वो सब पहले से ही जानते है जो ये कहते हैं
मैने कहा मेरी मानो तुम अपने घर जाओ
बेहतर है ये कविता ना छपवाओ
ये कवि सिर्फ कहना जानते है
सुनना इन की आदत में नही
इन्हें कुछ भी कहो तो बुरा मानते हैं
ये तो दूसरों को सीख देना ही अपन धर्म मानते हैं
ये और बात है कि ये खुद कितना जानते हैं
इनका ,समझदारी से, बस इतना ही है नाता
इन्हें अपने अलावा कोई समझदार नज़र नहीं आता
क्यों ततैयों के छत्ते मे हाथ देते हो
इनको छोड़ो "आम आदमी" के बारे मे लिखो
अगर कुछ लिख लेते हो
बात उसकी समझ में आई
खुद उठा , अपनी कविता उठाई
लेकिन जब उसने पीठ घुमाई
मैने कहा ये तो बताते जाओ
तुम कौन हो भाई
मेरी ओर बिन देखे बोला
"आम आदमी"
5 comments:
आपने उचित जवाब दिया है.
बहुत बढ़िया रचना.
कवि ही है जो आम आदमी की बात करता है. उसके बारे में लिखता है. जब तक कवि की कलम उसके हाथ में है, आम आदमी को चिंता छू भी नहीं सकती.
आपके ब्लॉग पर आज पहली बार आया, और सच कहूं तो बहुत सुकून मिला. सुकून इस बात का कि समाज में कवि अभी भी पूज्यनीय है.
मैंने अब तक आपके प्रायः हर पोस्ट पर टिपण्णी कि है पर एक भी टिपण्णी दिखाई नही देती ये कोई तकनिकी खराबी है या आपकी इच्छा ? समझ नही पा रहा हूँ.
"तुम्हारी मदद की दरकार है
मेरे पास
एक कविता तैयार है
बड़ी मुश्किल से लिख पाया हूँ
कहीं छपवा दो"
अरे भई, उसे एक ब्लॉग खुलवा दो, उसे चिट्ठाकार बना दो!
बालकिशन जी ऐसा तकनीकी खराबी की वजह से हुआ होगा यकीन मानिए मेर कोई हाथ नही आपके प्रेम एवं टिप्पणी के लिये हृदय से धन्यवाद मुझे आप्के बलाग पर कुछ नही मिला इस लिये इस माधय्म से आप तक पहुच रहा हू
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