Monday, November 26, 2007

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा किसी और का कोई दोष नही, बस मेरी ही नादानी है
 जाने मै कैसे भूल गया मेरा सफर तो रेगिस्तानी है
 इन रेतीली राहो में सदा सूरज को दहकता मिलना है
 बून्दों के लिये यहाँ आसमान को तकना भी बेमानी है
 बदली के बरसने की जाने उम्मीद क्यों मेरे मन में जगी
 यहां तो बदली का दिखना भी , खुदा की मेहरबानी है
 यहाँ रेत के दरिया बहते हैं कोई प्यास बुझाएगा कैसे
प्यासे से पूछो मरूथल में किस हद तक दुर्लभ पानी है
यहाँ बचा बचा के रखते हैँ सब अपने अपने पानी को
 यहाँ काम वही आता है जो अपनी बोतल का पानी है
 पानी पानी चिल्लाने से यहाँ कोई नहीं देता पानी
प्यासा ही रहना सीख अगर तुझे अपनी जान बचानी है
मृगतृष्णा के पीछे दोड़ा तो दौड़ दौड़ मर जायेगा
 पानी तो वहाँ मिलना ही नही, बस अपनी जान गंवानी है
 इसे प्यासे की मजबूरी कहूँ या चाह कहूँ दीवाने की
जब जानता है मृगतृष्णा है क्यों मानता है कि पानी है
 अब इस में तेरा दोष कहाँ , मेरी ही तो नादानी है
 तुम भी तो थी मृगतृष्णा ही मैनें समझा कि पानी है

10 comments:

Shiv Kumar Mishra said...

यहाँ बचा बचा के रखते हैँ सब अपने अपने पानी को
यहाँ काम वही आता है जो अपनी बोतल का पानी है

जीवन की सच्चाई का वर्णन है पूरी कविता में...

बालकिशन said...

कवि है कितना सहनशील ये पोस्ट यही दर्शाती है
मन-भावों पर चढी हुई कविता तो यूँ ही आती है

सर,

आपकी लेखनी नए-नए आयाम स्थापित कर रही है. कविता पर आपकी पकड़ अद्भुत है. ऐसे ही लिखते रहें और हमें काव्य-अनुभूतियों से ओत-प्रोत कराते रहें.

Keerti Vaidya said...

bhut he payari aur gehari rachna hai...kuch kho se gayi padtey padtey...

Krishan lal "krishan" said...

प्रोत्साहन एवं प्रशंसां के लिये धन्यवाद
वस्तुत: किसी भी रचना की सफलता इसी मे है कि वो आप जैसे बुद्धिजीवी पाठको को कितना छू पाती है। रचनात्मक प्ररेणा देने के लिये आप सब भाइयों का आभारी हूँ

36solutions said...

मृगतष्‍णा पर यह एक वास्‍तविक भाव प्रस्‍तुत करती कविता है, सीधे सपाट शव्‍दों में दिल के अंदर तक प्रवेश करती । वाह ।

आरंभ
जूनियर कांउसिल

रंजू भाटिया said...

bahut sundar hai aapki lines

Divine India said...

अद्भुत कविता…।
ज्यादा कुछ इसपर और नहीं कहा जा सकता…।

Anonymous said...

क्ष्ल्ज्य्तअति सुन्दर अति प्रभावशाली कविता । सीधे हृदय में उतर गई। इतना प्रभाव वही छोड़ सकता है जो दिल से लिखता हो । आपने अपने बारे में ठीक ही लिखा है कि आप तो बस दिल का दर्द कागज़ पे उतारते हैं। पहली बार आपका साइट देखा। आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी

Anonymous said...

Great

Vivek Ranjan Shrivastava said...

तुम भी तो थी मृगतृष्णा ही मैनें समझा कि पानी है ,
...... अच्छी लगी .
"मृगतृष्णा" पर तो इस बार हिन्द युग्म ने काव्य पल्लवन प्रतियोगिता ही आयोजित कर दी है . और भी मित्रो की रचनायें आयेंगि विषय पर .
विवेक रंजन