Thursday, January 24, 2008

तब जा के गुजारा होता है

जो भी चाहे तूँ मंजिल चुन जो भी चाहे तूँ सपने बुन जो ठीक लगे सो करता जा ना इसकी सुन ना उसकी सुन सब कुछ हासिल हो सकता है गर खुद मे तूँ पैदा कर ले मंजिल को पाने की धुन और राहो पे चलने का गुण ना कामयाब इन्सान सदा किस्मत का ही रोना रोता है कहता है मिलता है वही किस्मत में जो लिखा होता है नहीं सोचता आम मिले कैसे जब पेड बबूल के बोता है अपने कर्मो का फल ना मिले ऐसा तो कभी नहीं होता है केवल इच्छा है पाने की नहीं हिम्मत दाँव लगाने की हाँ ऐसा शख्स तो हर बाजी पहले से ही हारा होता है चाहत रखने भर से ही मंजिल कहाँ किसे मिलती मंजिल के लिये तो चलते रहो तब जा के गुजारा होता है

2 comments:

Keerti Vaidya said...

sunder rachna,....

नीरज गोस्वामी said...

जीवन का सार है आप की इन पंक्तियों में.....बहुत सुंदर...वाह...
नीरज