शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Wednesday, February 13, 2008
सफर का अन्त
कितनी तकलीफ हुई होगी, उस शख्स के बारे में सोचो
जिसे सफर के अन्त में पता चले , वो जितना चला बेकार चला
मन्जिल हो अभी भी दूर खड़ी , और खत्म हुआ जिसका रस्ता
मन्जिल ने हो जिस राही से कहा , नादान तूँ नाहक दौड़ा किया
मुझ तक कोई राह नहीं आती , तूँ मुझ तक पंहुच नहीं सकता
मेरे चारों और मीलों खाई, कोई जिसको लाँघ नहीं सकता
तब राही ने मन्जिल से कहा, काहे को रही इतना इतरा
जिस हद तक आता था रस्ता, उस हद तक तो मैं आ पंहुचा
तुम चाहती तो बाकी दूरी पल भर में ही मिट सकती थी
इक कदम बढ़ाना था तुमको, मुझको मन्जिल मिल सकती थी
लेकिन तुमने चाहा ही नहीं, और मेरे चाहने से होना था क्या
आगे का सफर संभव ही नहीं, ना तूँ चाहे ना चाहे खुदा
ओ के टा टा बाई बाई , तेरी राहों का राही लौट चला
फिर भी तेरे जीवन में कभी इतना सूना पन आ जाये
ना राह दिखे ना राही ही , तूँ खुद से भी घबरा जाये
तब अहम किनारे पे रख के, इक बार पुकारना धीरे से
उस रोज भी तेरा दिवाना , तेरे आसपास मिल जायेगा
वीरान पड़ी तेरी राहों का, फिर से राही बन जायेगा
आखिर तो तेरा दीवाना है , तुझ बिन ये कहाँ और जायेगा
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6 comments:
Idea is splendid but tukbandi is not satisfactory.
I think you have been deeply hurted by relatives and friends. Why do you think about negative side? You have to take inspiration and go ahead with positive thinking.
Rambir ji aapko idea achha lga thanks.
jahaan tak tukbandi kaa swaal aapne theek kaha usme kami hai. mai use theek kar ke phir se post karne ka koshish karunga.
Priyanka ji
since I do not know who you are, it may not be advisable to say anything publically on your comments.The only thing I can say this moment is to request you to visit the blog frequently and apprise me of your valuable comments.
Many many thanks for visiting the blog and putting your upright comments first time on my blog.
kavita apney mein purn hai....bhav apki kavta mein sagar ke lehro sey badtey aur gathtey hai.....anand to ata he hai saath-saath seekhney ko bhi milta hai...
janah bhavnaye umad rahi ho wanha tukbandi vishes nahi reheti yeh mera manana hai...
कीर्ति वैदया जी,
आपकी मूल्यवान टिप्पणी के लिये धन्यवाद्।
हर रचनाकार जब किसी रचना का निर्माण करता है तो एक खास मनोभावों से गुजर रहा होता ह। क्भी वो परिस्थिति-जनक,कभी पूर्णतया काल्पिनक और कभी दोनो का मिश्रण होता है। उस मनोस्थिति या उन मनोभावों के इतना करीब कोई पाठक पंहुच सकता है पहली बार देखने को मिला है । आपकी इस असाधारण पंहुच के लियेए जितनी प्रंशसा करूँ कम है। आप एक अच्छी रचनाकार तो हैं ही एक सुलझी हुई प्रबुद्धध पाठक भी हैं । इसक लिये बधाई। कृप्या् मेरे इस ब्लाग पर आकर हौंसला बढाते रहिये।
पुन: धन्यवाद ।
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