Thursday, February 14, 2008

रैड रोज़ और 'वो'

पैरों से मसलोगी या फिर चूमोंगी होठों से उसे
भेजा तो है हमने तुझे इक गुलाब अभी अभी
सबसे सुर्ख रेड रोज मेरा हो ये सोच कर
खूने जिगर से उसको सींचा था कभी कभी
 उस फूल मे दिल भी मेरा आये तुझे नजर
 दिल के लहू से गुलाब ये रंगा है अभी अभी
 ता उम्र बदली करवटें ना नींद थी न ख्वाब थे
 लगी आँख तो दिखा है तेरा ख्वाब अभी अभी
 ता उम्र मिले जख्म, और अब जाके तुम मिली
 खुदा ने किया चुकता मेरा हिसाब अभी अभी
 बन के सवाल सारी उम्र जो उलझाता रहामुझे
 मिलने से तेरे मिल गया वो जवाब अभी अभी
 समझेंगे अब है प्यार क्या और होती है क्या वफा
लगी हाथ अपने है प्यार की इक किताब अभी अभी

1 comment:

Anonymous said...

सार्थक और सटीक