Wednesday, March 26, 2008

देखते ही देखते आकाश खाली हो गया

कटने को अकेले भी तो कट रही थी जिन्दगी हर उम्मीद मर चुकी थी हर तमन्ना दफन थी बेशक कोई खुशी ना थी लेकिन कोई गम भी ना था जब तक ना तुम मुझसे मिली, मै मिला तुम से ना था त्तुम से क्या मिला कि हर उम्मीद जिन्दा हो गई सोच मेरी फिर से इक उडता परिन्दा हो गई सोये सब अरमान मेरे इक ही पल में जग गये हर दबी उमंग को फिर पंख जैसे लग गये मेरी उम्मीदें मेरी उमगें मेरी तमन्ना मेरे अरमाँ थे भर रहे ऊँची उड़ान कम पड़ रहा था आसमाँ मस्त हो कर उड़ रहे थे सब खुले आकाश में कुछ तथ दूर दूर तो कुछ थे पास पास मे क्या हंसी नजारा था सारा गगन हमारा था तुझको दिखाने के लिये मैने तुझे पुकारा था बस इक नजर डाली थी तुम ने उस भरे आकाश पे मेरी तमन्ना मेरी उम्मीदों और मेरे विश्वास पे फिर घायल पक्षी की तरह सब नीचे को गिरने लगे कुछ तडफडाते गिर पडे कुछ गिरते ही मरने लगे देखते ही देखते आकाश खाली हो गया मानों किसी गरीब की रोटी की थाली हो गया पर ना जाने क्यों तुम अब भी मुस्कराती जा रही थी शायद अपनी करनी पे तुम बहुत इतरा रही थी अलविदा अलविदा कह दूर होती जा रही थी फिर ना मिलने की हिदायत मुझ को देती जा रही थी यूँ लगा, लगने से पहले खत्म मेला हो गया तेरा साथ पाने की चाह में मैं और अकेला हो गया काश वो नजारा मैने तुम को दिखलाया ना होता तुम मेरी होती ना होती पर यूँ तेरा गम भी ना होता

6 comments:

rakhshanda said...

bahot khoobsoorat hai...

rakhshanda said...

bahot khoobsoorat hai...

Udan Tashtari said...

बिना व्याकरण और नियमों के..बहुत सही भाव!!!

Udan Tashtari said...

बिना व्याकरण और नियमों के..बहुत सही भाव!!!

Krishan lal "krishan" said...

Rakshanda ji

Heartiest Welcome to my blog. Thanks for appreciating the ghazal.Please continue patronizing. Thanks again.

Krishan lal "krishan" said...

Udan Tashtari ji
आपका बहुत बहुत धन्यवाद व्याकरण कि त्रुटियो की और धयान दिलाने के लिये। ऊन्हए कुछ ठीक करने की कुछ कोशिश की है और दोबारा पोस्ट भी कर दी है। आप जैसे जागरुक पाठकों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इस के लिये आप का आभारी हूँ कृप्या इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें पुन: धन्यवाद