इक इक करके हम से छूटे, सारे रिश्ते ऐसे
पतझड़ के मौसम में झड़ते, पेड़ से पत्ते जैसे
अब इस पेड़ पर नहीं बचा है, एक भी पत्ता बाकी
देखें कबतक खड़ा रहेगा, अब ये ठूंठ एकाकी
पतझड़ के मौसम में झड़ते, पेड़ से पत्ते जैसे
अब इस पेड़ पर नहीं बचा है, एक भी पत्ता बाकी
देखें कबतक खड़ा रहेगा, अब ये ठूंठ एकाकी
छोड़ घौसला पक्षी उड़ गये, जब कुछ नज़र ना आया
अपना कहने वालों ने, बस, इतना साथ निभाया
क्च्चे धागे से भी क्च्चा, हर इक रिश्ता निकला
हल्की सी जो तपिश लगी, तो बर्फ के जैसा पिघला
जीवन के इस सफर में, इक इक बन्धन ऐसा टूटा
मानो कोई रेत का घर था, या फिर ख्वाब था झूठा
पर फिर इक दिन बारिश होगी, फिर मौसम बदलेगा
फिर फूटेगी कोंपल, पत्ता नया कोई निकलेगा
फिर कोई पक्षी, इसकी, किसी डाली पे नीड़ धरेगा
कोई तो होगा जो आकर, कभी मेरी पीड़ हरेगा
उस दिन छोड़ के जाने वालों, शायद तुम भी आओ
जब अपना लेंगें दूजे, तब, तुम भी ह्क जतलाओ
अपना कहने वालों ने, बस, इतना साथ निभाया
क्च्चे धागे से भी क्च्चा, हर इक रिश्ता निकला
हल्की सी जो तपिश लगी, तो बर्फ के जैसा पिघला
जीवन के इस सफर में, इक इक बन्धन ऐसा टूटा
मानो कोई रेत का घर था, या फिर ख्वाब था झूठा
पर फिर इक दिन बारिश होगी, फिर मौसम बदलेगा
फिर फूटेगी कोंपल, पत्ता नया कोई निकलेगा
फिर कोई पक्षी, इसकी, किसी डाली पे नीड़ धरेगा
कोई तो होगा जो आकर, कभी मेरी पीड़ हरेगा
उस दिन छोड़ के जाने वालों, शायद तुम भी आओ
जब अपना लेंगें दूजे, तब, तुम भी ह्क जतलाओ
7 comments:
वाह, बहुत उम्दा भाव. बधाई.
कविता की तारीफ के लिये धन्यवाद् समीर जी
आज हम आप के ब्लाग पर उडन तशतरी द्वारा हो आये है यकीन मानिये जाकर ऐसा लगा पहले क्यों नही गये एक अदद टिप्प्णी भी चेप आये है विअसे आपकी तरह हमे सटीक और छोटी टिप्प्णी करनी नही आती पर सीख जायेगे धीरे धीरे
बहुत अच्छा है भाई.
इक इक करके हम से छूटे, सारे रिश्ते ऐसे
पतझड़ के मौसम में झड़ते, पेड़ से पत्ते जैसे
एक अच्छी और दार्शनिक रचना..
***राजीव रंजन प्रसाद
इक इक करके हम से छूटे, सारे रिश्ते ऐसे
पतझड़ के मौसम में झड़ते, पेड़ से पत्ते जैसे
एक अच्छी और दार्शनिक रचना..
***राजीव रंजन प्रसाद
राजीव रजन जी
कविता को पसन्द करने के लिये और इतनि उत्साह्वर्धक टिप्प्णी देने के लिये आप का धन्यवाद्।
आप नियमित रूप से बलाग पर आते है इसके लिये मै आपका हृदय से आभारी हूँ मेरा प्रयत्न रहेगा कि आपको अपनी क्षमता के अनूरूप बेह्तर से बेहतर रचना दे सकूँ
मीत जी
शुक्रिया रचना को पसन्द करने के लिय । वास्तव मए मै आज आप्के ब्लाग पर गया था प्र कुछ सुन नही पाया लगता है मेरे PC मे कुछ खराबी है
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