धीरे धीरे आजकल क्यों रिश्ते सब मरने लगे
ये कैसी तरक्की है जो हम आप हैं करने लगे
थाली किसीकी खाली है हुआ करे किसी को क्या
आजकल तो सब के सब अपना घर भरने लगे
अपने और बेगानो मे नहीं फर्क कुछ बाकी बचा
दोनो बचाने की जगह बेडा गरक करने लगे
रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे
उसके पडोसी रात भर खर्राटे तक भरने लगे
अपना भला बुरा लगे अब सोचने हम इस कदर
अपने हित की खातिर दुनिया का बुरा करने लगे
मालिक का हो कि गैर का बस खेत हरा चाहिये
आजकल सारे गधे चारा हरा चरने लगे
बुद्धि मिली दिल खो गया पढलिख के बस इतना हुआ
तरक्की तो करने लगे पर सोच मे गिरने लगे
ये कैसी तरक्की है जो हम आप हैं करने लगे
थाली किसीकी खाली है हुआ करे किसी को क्या
आजकल तो सब के सब अपना घर भरने लगे
अपने और बेगानो मे नहीं फर्क कुछ बाकी बचा
दोनो बचाने की जगह बेडा गरक करने लगे
रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे
उसके पडोसी रात भर खर्राटे तक भरने लगे
अपना भला बुरा लगे अब सोचने हम इस कदर
अपने हित की खातिर दुनिया का बुरा करने लगे
मालिक का हो कि गैर का बस खेत हरा चाहिये
आजकल सारे गधे चारा हरा चरने लगे
बुद्धि मिली दिल खो गया पढलिख के बस इतना हुआ
तरक्की तो करने लगे पर सोच मे गिरने लगे
4 comments:
itne kam sabdo me sahi bat kahane ke liye badhai. sundar. likhate rhe.
Rashmi saurana ji
aapka dhanyawaad kavita ko pasand karane aur us par prbhaavshaali dhang se tippani karne ke liye. Please continue patronising the blog.
बुद्धि मिली दिल खो गया पढलिख के बस इतना हुआ
तरक्की तो करने लगे पर सोच मे गिरने लगे
-बढ़िया है.
Smiir ji
kavita ko pasand karne ke liye bahut bahut dhanyawaad.
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