Wednesday, July 16, 2008

कर सको मेरी कम प्यास तो फिर तुम मेरे मीत बनो

मैं मीत नहीं ऐसा जिसका हर कोई साथ निभा पाये
ना ही हूं ऐसा मीत कि जो भी मिला उसी संग हो जाये
तुम थाम के मेरा हाथ चल सको खुले मे साथ
 तो फिर तुम मेरे मीत बनो
 जीवन भर हारा हूँ बाजी मैं यहाँ वहाँ इससे उससे
 नहीं खेल मे मेरे कमी रही बस जीत गये सब किस्मत से
 है दाव पे अब तो हृदय लगा जिसे हारना चाह्ता हूँ तुमसे
 तुम भी चाहो ये जीत , हो तुम को भी मुझ से प्रीत
 तो फिर तुम मेरे मीत बनो
 उस बदली से भी क्या हासिल जो ना गरजे ना बरसे ही
 ऐसे बादल के साये तले दो बूँद को धरती तरसेगी
तुम छोड ऊँचा आकाश आ सको जो मेरे पास
 कर सको मेरी कम प्यास तो फिर तुम मेरे मीत बनो
 मुझ को तो चाहत है तेरे बाहूपाश मे आने की
आलिंगन कर होठों को चूम अधरो मे आग लगाने की
 गर तू भी ऐसा ही चाहे आतुर हो अगर तेरी बाहें
मेरा आलिंगन करने को तो फिर तुम मेरे मीत बनो

5 comments:

कामोद Kaamod said...

जीवन भर हारा हूँ बाजी मैं यहाँ वहाँ इससे उससे
नहीं खेल मे मेरे कमी रही बस जीत गये सब किस्मत से
है दाव पे अब तो हृदय लगा जिसे हारना चाह्ता हूँ तुमसे
तुम भी चाहो ये जीत , हो तुम को भी मुझ से प्रीत
तो फिर तुम मेरे मीत बनो


क्या बात कही है सर जी आपने.
बहुत अच्छा लिखा है ...

Udan Tashtari said...

Badhiya hai, badhai.

Krishan lal "krishan" said...

समीर जी और कामोद जी
आप्का आभारी हूँ कविता को पढने और उस पर उत्साह्ववर्धक टिपण्णी करने के लिये

seema gupta said...

तुम थाम के मेरा हाथ चल सको खुले मे साथ
तो फिर तुम मेरे मीत बनो
"bhut sunder mnbhavan rachna"

आशीष "अंशुमाली" said...

प्‍यार की कोई शर्त नहीं।