बलबूते ऒरों के अन्धेरे मिटाये नहीं जाते
अन्धेरॊं मे ज्यादा दूर तक साये नहीं जाते
बिना रहबर तू कॆसे राह ढूंढेगा ए मुसाफिर
पथरीली राह कदमो के निशां पाये नही जाते
नक्शे देख पढ्कर ही तू अपनी ढून्ढ ले मन्जिल
ले चलें थामकर उंगली वो अब पाये नहीं जाते
नही जज्बात दिल मे तो यूंही मिलने से क्या हासिल
दिलो मे गान्ठ रखके रिश्ते निभाये नही जाते
ये सपने हॆ तो फिर रातो की खातिर ही बचा रखो
उजाले मे खुली आंखों ये दिखलाये नहीं जाते
अन्धेरो मे जरूरत रोशनी की पड ही जाती हॆ
यूं जुगनु देखकर चिराग बुझाये नही जाते
चॊराहो मे चिरागों से करेगे रोशनी वो क्या
दिये इक दो भी जिनसे घर मे जलाये नही जाते
चॊराहों मे इंतजाम-ए-रोशनी कीजे मगर समझो
घरो में जलते दीये भी तो बुझाये नहीं जाते
अन्धेरॊं मे ज्यादा दूर तक साये नहीं जाते
बिना रहबर तू कॆसे राह ढूंढेगा ए मुसाफिर
पथरीली राह कदमो के निशां पाये नही जाते
नक्शे देख पढ्कर ही तू अपनी ढून्ढ ले मन्जिल
ले चलें थामकर उंगली वो अब पाये नहीं जाते
नही जज्बात दिल मे तो यूंही मिलने से क्या हासिल
दिलो मे गान्ठ रखके रिश्ते निभाये नही जाते
ये सपने हॆ तो फिर रातो की खातिर ही बचा रखो
उजाले मे खुली आंखों ये दिखलाये नहीं जाते
अन्धेरो मे जरूरत रोशनी की पड ही जाती हॆ
यूं जुगनु देखकर चिराग बुझाये नही जाते
चॊराहो मे चिरागों से करेगे रोशनी वो क्या
दिये इक दो भी जिनसे घर मे जलाये नही जाते
चॊराहों मे इंतजाम-ए-रोशनी कीजे मगर समझो
घरो में जलते दीये भी तो बुझाये नहीं जाते
4 comments:
अच्छी रचना। बेहतरीन शेर-
चॊराहे मे जला चिराग वो क्या रोशनी करते
अपने घर चिराग जिनसे जलाये नही जाते
चॊराहों मे इंतजाम-ए-रोशनी कीजे मगर समझो
घरो में जलते दीये भी तो बुझाये नहीं जाते
इक-इक शे'र में आतिश है,और मेरा पसंदीदा शे'र है:
बिना रहबर तू कैसे राह ढूंढेगा ए मुसाफिर
पत्थरीली राह कदमो के निशां पाये नही जाते
बिना रहबर तू कॆसे राह ढूंढेगा ए मुसाफिर
पत्थरीली राह कदमो के निशां पाये नही जाते
नक्शे देख पढ्कर ही तू अपनी ढून्ढ ले मन्जिल
ले चलें थामकर उंगली वो अब पाये नहीं जाते
बेहतरीन रचना....
बलबूते ऒरों के अन्धेरे मिटाये नहीं जाते
अन्धेरॊं मे ज्यादा दूर तक साये नहीं जाते
bahot badhai dena chahunga,esa ghazal kar bahot hi kam padhane ko milte hai aaj ke time me aapko dhero badhai...
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