Tuesday, November 18, 2008

पीकर मरना ही बेहतर हॆ यूं प्यासा जीते जाने से

आज तो पीकर ही जायेंगे हम तेरे मयखाने से
सुना हॆ सारे लॊट चुके जो भी तेरे दीवाने थे

 मांगने से ना मिले तो हक छीन के लेना पडता हॆ
उठा ले जायेगे जाम-ओ-मीना तेरे मयखाने से

 हॆ कॊन सा तेरा पॆमाना जो जूठा अब तक हुआ ना हो
क्यों इनको बचाता फिरता हॆ मेरे हॊठॊं तक आने से

 मालूम हॆ साकी तेरे इक इक घूंट की कीमत होती हॆ
हम ने मना किया कब हॆ पूरे दाम चुकाने से

 नहीं आज तो कल दे ही देगे हर पॆमाने की कीमत
कॊन मना करता हॆ जालिम तेरा कर्ज़ चुकाने से

 दो घून्ट हमें दे दे रब्बा चाहे दो सांसे कम कर दे
 पीकर मरना ही बेहतर हॆ यूं प्यासा जीते जाने से

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