Wednesday, June 10, 2009

इसे प्यासे की मजबूरी कहो या चाह कहो दीवाने की

इसमे तेरा कोई दोष नही, बस मेरी ही नादानी है
जाने मै कैसे भूल गया मेरा सफर तो रेगिस्तानी है

 मेरी रेतीली राहो में सदा सूरज को दहकता मिलना है
 बून्दों के लिये यहाँ आसमान को तकना भी बेमानी है

बदली के बरसने की जाने उम्मीद क्यों मेरे मन में जगी
 यहां तो बदली का दिखना भी , खुदा की मेहरबानी है

 यहाँ रेत के दरिया बहते हैं कोई प्यास बुझाए तो कैसे
 प्यासे से पूछो मरूथल में किस हद तक दुर्लभ पानी है

यहाँ बचा बचा के रखते हैँ सब अपने अपने पानी को
यहाँ काम वही आता है जो अपनी बोतल का पानी है

पानी पानी चिल्लाने से यहाँ कोई नहीं देता पानी
प्यासा ही रहना सीख अगर तुझे अपनी जान बचानी है

मृगतृष्णा के पीछे दोड़ा तो दौड़ दौड़ मर जायेगा
पानी तो वहाँ मिलना ही नही, बस अपनी जान गंवानी है

इसे प्यासे की मजबूरी कहो या चाह कहो दीवाने की
वो जानता है मृगतृष्णा है पर मानता है कि पानी है

फिर इस में तेरा दोष कहाँ , ये मेरी ही नादानी है
 तुम तो थी ही मृगतृष्णा मैनें ही समझा पानी है

5 comments:

Anonymous said...

Achhi Kavita Hai...

Anonymous said...

baat bhi to karo

Anonymous said...

samne aayo

Krishan lal "krishan" said...

Santosh ji

Jin Dhundhaa tin paayaa gehre paani paith
Main vapura buudan dara rahaa kinare baith

Krishan lal "krishan" said...

Tere dil me bhi hain tere kadmo me bhi
Kya kahen kyon nazar tujhko aate nahin

Pyaar karte hain jaan se bhi jyaade tumhe
Baat itni hai bus hum bataate nahin

Baat kis se karen koi apnaa to ho
Gairon ko to hum kuchh bhi bataate nahin

Samne kiske aayen koi chahtaa to ho
Bevazah samne har ek ke aate nahin