Monday, August 3, 2009

जब तक दुर्योधन जिन्दा है तूँ लड़े बिना नहीं रह सकता

ये जीवन इक समझौता है हर बार मुझे समझाते हो
सच कहो तो कितने समझौते तुम खुशी खुशी कर पाते हो
जो टीस सी दिल में छोड़ जाये वो समर्पण है समझौता नही
जो चाहे नाम दो तुम इसको मुझसे तो ये सब होता नहीं
ये जीवन है, शतरंज नहीं, यहां नही बराबर छूटोगे
यहां समझौता मुमकिन ही नही या हारोगे या जीतोगे
जीत भी सच है हार भी सच है झूठ सिर्फ समझौता है
आन्खे मूंदना घुटने टेकना क्या ये समझौता होता है
आशावाद तो लड़ना है जब तक जीत नहीं वरते
वो क्या बाजी जीतेंगें जो सदा हार से रहे हैं डरते
वो शख्स जो बातों बातों मे समझौता करते फिरते हैं
या तो वो हारे होते हैं या फिर वो हार से डरते हैं
जीवन है महा संग्राम यहां हर मोड़ पे जंग है छिडी हुई
लड़ना ही तेरी नियति है तुझे समझौते की क्यों पड़ी हुई
जब तक दुर्योधन जिन्दा है तूँ लड़े बिना नहीं रह सकता
इसे धर्मयुद्ध ही मान के लड़ गर हार जीत नहीं सह सकता

1 comment:

श्यामल सुमन said...

जो टीस सी दिल में छोड़ जाये वो समर्पण है समझौता नही
जो चाहे नाम दो तुम इसको मुझसे तो ये सब होता नहीं

बहुत अच्छे भाव की प्रस्तुति।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com