Tuesday, January 19, 2010

जी करता है कभी मै तेरे होंठ गुलाबी चूमू

तुम चाहो तो समझ लो ये कि गया मै तुझ से हार
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार

जी करता है कभी मैं तेरे होंठ गुलाबी चूमूं
कभी तुझे आगोश में लेकर बिना पीये ही झूमु

या होठों से कोई गजल लिखूं तेरे गालो पे
 या कोई गीत बनाऊं तेरे मखमली से बालों पे

 या गदराये जिस्म के तेरे अंग अंग पे लिखूं कविता
 या फिर तेरी चाल सी कोई ढूँढ़ लाऊं नई सरिता

 कभी तेरे गालों को चूमूं जुल्फों से तेरी खेलूं
और कभी मन करता कसके बाहों में तुझे लेलूं

 तुम चाहो तो कह लो इसको दबी वासना मेरी
 वैसे सीधे सच्चे शब्दों में प्रेम का है इजहार
 और अगर चाहो तो मान लो मुझे है तुम से प्यार

 पहरों बैठे रहें हम लेके इक दूजे का हाथ
 इक दिल दूजे दिल से कर ले बिन बोले हर बात

 शिकवा शिकायत और गिला बिना कहे मिट जा
ए तुम इक कदम बढाओ और दो कदम मेरे बढ़ जायें

 कभी तेरे हाथो की लकीरें मिलें मेरे हाथों में
 बिगड़ी किस्मत संवर जाए बातों ही बातों में

जी करता है जब भी तुम घर आओगी इस बार
 जिद्द कर तेरा हाथ पकड़ लू और करूं इसरार

बहुत दिनों के बाद अब लगता आता है इतवार
तुम चाहो तो समझ लो ये की मुझे है तुम से प्यार

4 comments:

dipayan said...

बहुत सुन्दर रचना प्यार के इज़हार की.

अजय कुमार said...

प्रेम में पगी हुई सुंदर रचना , बधाई

Rajeysha said...

काफी खुल्‍लम खुल्‍ला इजहार कि‍या है, प्रतीत होता है केवल आपने ही प्‍यार कि‍या है।

अमिताभ श्रीवास्तव said...

jab pyaar ho to, izhaar bhi hona chaihye ji, aour yadi vo aapki tarah ho to baat hi kya. achhi rachna.