Monday, February 22, 2010

तुम पहले दोस्त बनी होती तो बात ही कुछ और होती

तुम पहले दोस्त बनी होती तो बात ही कुछ और होती

कुछ पहले और मिली होती तो बात ही कुछ और होती

ये सूरज पहले निकल आता मेरे दिन कुछ और हुए होते

ये चांदनी पहले खिली होती तो रात ही कुछ और होती

ता उम्र अकेले तन्हा ही मै यहाँ वहां भटका ही किया

तेरा साथ मिला होता पहले तो बात ही कुछ और होती

जीवन के इस मरुथल में सूरज तो दहकते मिले बहुत

ये बदली पहले घिरी होती तो बरसात ही कुछ और होती

अब मुंह में दांत नही बाक़ी तो चनो का बोलो क्या कीजे

ये पोटली पहले मिली होती तो बात ही कुछ और होती

धरती तो क्या ये आसमान भी हम को छोटा पड़ जाता

कुछ पहले उड़ान भरी होती तो बात ही कुछ और होती

चंद खुशियाँ तेरी झोली में भर दूँ कोशिश है अब भी मेरी

कहीं पहले मिली होत्ती तो ये सौगात ही कुछ और होती

किस किस बात की बात करूं बस इतनी बात समझ लीजे

कुछ पहले बात हुई होती तो हर बात ही कुछ और होती

2 comments:

अंजना said...

बहुत अच्छी रचना |

रंजना said...

वाह....बहुत सुन्दर रचना....
सहज सुन्दर सरस अभिव्यक्ति...