Wednesday, March 23, 2011

बेहतर है कि तराजू ना हो दोस्ती में शामिल

ना सुख में साथ देना ना दुःख में काम आना
 कभी करना ये बहाना कभी करना वो बहाना

 बने दोस्त हो तो दोस्तों की तरह पेश आओ
 क्यों हो ऐसे पेश आते जैसे आता है जमाना

 उसे दोस्ती के काबिल मिलेगा कहाँ से कोई
देने से पेशतर जो हर वक्त चाहे पाना दिया

 दोस्ती में जो भी दिया तोल तोल कर के
 हर वक्त का तराजू नही प्यार का निभाना

 लिए बैठा खुद समुंदर की प्यास अपने दिल में
 चाहता दो बूँद  से है  प्यास दोस्त की बुझाना

बेहतर है दोस्ती में, ना रहे तराजू शामिल
हो अगर तो उसमे हरगिज पासंग नही लगाना

सदा सोचता रहा ये क्या मिला है दोस्तों से
ये हिसाब दोस्ती में नही होता है लगाना

हर बात दोस्त की तो तुझे नागवार गुजरी
वाजिब था कितना तेरा. दिल दोस्त का दुखाना

1 comment:

Unknown said...

bahut badia krishna ji... bahut gehrai h is kavita me..