Sunday, January 29, 2017

रिश्तों को जीने की जगह शतरंज का दर्जा दे डाला

अर्थहीन सी लगने लगी  है मुझ को हर एक बात
चाहे कोई अपना ले या  छोड़ दे मेरा साथ

किसे कहूँ दुनिया में अपना किसे पराया  मानु
रिश्ता दोनों का है  जब तक सिद्ध होता है स्वार्थ

तेज दिमाग से काम ले रहे तेज छुरी के जैसा
स्वार्थ की हर एक शख्स लगा कर बैठा हुआ है घात

बीज तो  अक्सर बोये  पर फसल नसीब में नही रही
जमीन कभी बंजर निकली कभी हुई नही बरसात

फ़ायदा और नुक्सान की गिनती कितनी ज्यादा सीख गए
ख़त्म हो गयी प्यार मोहब्बत , ख़तम हुए जज्बात

रिश्तों को जीने की जगह शतरंज का दर्जा दे डाला
चाल पे चाल लगे चलने,  किसीको शह  दी  किसीको मात

बेवफाई हो जिनकी फितरत उन्हें बदलना है हर हाल
और  बहाना  होता  है  अक्सर कि बदल गए हालात








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