Monday, June 19, 2017

ग़म होता है सिर्फ काम की चीजों के खो जाने का

प्यासे की ओक  पे रुक रुक कर कतरा कतरा  पानी डाला
प्यास बुझाने से ज्यादा इरादा है तेरा  तड़पाने का

जूठा होने के डर  से अगर होंठो तक भी आ ना सके
 ना मय  पीने के काम आये तो काम है क्या पैमाने का

आज नही तो कल तुझको महसूस ये होना है आखिर
ग़म  होता है सिर्फ काम की चीजों के खो जाने का

अपना रिश्ता टूटने की कगार पे आखिर आ पहुंचा
काश कुछ  जोर लगाया होता तूने इसे बचाने का

कागज़ की कश्ती ए दोस्त  ज्यादा देर नही  चलती
लाख तजुर्बा हो तुझको भले ऎसी कश्ती चलाने का

ये संस्कारो की मैली चादर , ये पाप पुण्य के  आडंबर
क्या  फायदा होना है  इन को ओढ़ मेरे पास  आने का

अमल तुझे करना ही नही तो  बात बनेगी  कोई कैसे
खाना ही नही तो हासिल  क्या गुड़ गुड़ जपते जाने का


















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