शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
देने को तैयार सब तू जब तक कुछ नहीं ले
जब भी कुछ लेने लगे तो कोई कुछ नहीं दे
धरम करम का ओढ़ लबादा करे उंची उंची बात
भीतर से तो जानवर जैसी करता हर एक बात
कुछ बाजियों में तो जीत हार का पता कहाँ चल पाता है
तू समझेगा तू जीता पर असल में होगा तू हारा
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