शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Monday, February 11, 2008
इजहार-ए-इश्क ना होने वाली वैलेन्टाईन से
हमने किया इकबाल-ए-जुर्म
और आपने दे दी सजा
अच्छा किया
अब इसमे तेरी क्या खता
इतिहास है इसका गवाह
इससे ज्यादा हुस्न ने
है कब किसी को कुछ दिया
आपने जो दी सजा
यूँ तो हमें कबूल है
लेकिन तूँ दिल पे हाथ रख
और फिर बता
इजहार-ए-इश्क करना क्या
कोई इतनी बड़ी भूल है
अपनी कब चाहत रही
कि गुलशन पे हम कब्जा करें
कब जताया हमनें हक
कि तुझसा सुन्दर फूल
मेरे चमन का फूल है
हाँ हमको ये पता ना था
कि गुलशन के आसपास भी
अपना निकलना है मना
किसी फूल की महक भी
उसको सूंघने का हक नहीं
जिसके जीवन में
मुकद्दर ने लिखे बस शूल हैं
बस अब इतना कहना है मुझे
कि अपना भी इक उसूल है
दोहराते हम कभी नहीं
जब भी हुई कोई भूल है
इस बार क्या कभी जिन्दगी में
वैलेन्टाईन मनायेंगे नहीं
और अपनी तो तूँ छोड़
किसी और के आगे भी हम
वैलेन्टाईन बनने के लिये
हाथ फैलायेंगे नहीं
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5 comments:
क्या बढिया लिखा है
"फूलों की महक भी उसको सूघने का हक नहीं
जिसके जीवन में मुकद्दद्दर ने लिखे बस शूल हैं "
पर सर दिल छोटा ना करो- वो नहीं और सही, और नहीं और सही
bahut khub likha sir ji,par sahi kaha wo nahia aur sahi,aur nahi koi aur hai.
शुक्रिया अन्जलि जी और महक जी। कविता की प्रशंसा के लिये।
शायद मेरी अगली कविता (जो मै कल पोस्ट करूंगा) के बाद आप ये सुझाव वापिस लेना चाहें ।
इतनी छोटी उम्र और इतनी बड़ी सलाह।वाह भैई वाह। मैडम किसी के भी बारे मे जल्दी से बनाई गयी अच्छी या बुरी राय अक्सर गलत साबित होती है।
Human being or human nature is the most complex thing to understand. And merely through one or two poems all the more a big NO
उसूल अच्छा चुना है आपने !:)
दिल को
स्पर्श करती है ये कवितालेकिन सजा क्या दी वो नही बताया
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