शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Tuesday, March 11, 2008
मै खफा होता नहीं हरगिज भी अपने प्यार से
गर बेवफाई और वफा मजबूरी हैं दोनों प्यार में
तो काहे जतलाना किसी भी बात का बेकार में
आपने वादा किया आये नहीं तो क्या हुआ
कुछ दिन तो अच्छे कट गये यूँ तेरे इंतजार मे
मुझको है अहसास कि मिलने मे वो मज़ा कहाँ
जो मज़ा आता है अपने यार की इन्तजार मे
आप फिर वादा करो मै फिर करूँगा इन्तजार
ये उम्र सारी काट सकता हूँ तेरे इन्तजार में
जीवन है ऐसे मोड़ पे कोई साथ दे सकता नहीं
साया भी साथ छोड़ गया क्या गिला फिर यार से
यूँ भी हर वादा तो किसी का वफा होता नहीं
जो तुम ना पूरे कर सके वादे वो बस दो चार थे
तूँ है मेरा प्यार बेशक लाख तड़पाये मुझे
मैं खफा होता नहीं हरगिज भी अपने प्यार से
क्या पता मजबूरियां कितनी रहीं होंगी तेरी
यार यूँ ही बेवफाई क्यो करेगा यार से
मै अभी से किस तरह कह दूँ तुम को बेवफा
किनारे पे होगा फैसला क्या कहूँ मझधार में
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5 comments:
बहुत प्यारी गजल कही है आपने। बधाई स्वीकारें।
जाकिर अली रजनीश जी
गजल को पसन्द करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत बेहतरीन गजल है।
आपने वादा किया आये नहीं तो क्या हुआ
कुछ दिन तो अच्छे कट गये यूँ तेरे इंतजार मे
किशन जी,
बेहतरीन गजल, ये शेर तो सीधे दिल में उतर गये हैं ।
क्या पता मजबूरियां कितनी रहीं होंगी तेरी
यार यूँ ही बेवफाई क्यो करेगा यार से ।
मै अभी से किस तरह कह दूँ तुम को बेवफा
किनारे पे होगा फैसला क्या कहूँ मझधार में ।
परम जीत बाली जी,एवं नीरज रोहिल्ला जी
आप दोनो का गजल को पसन्द करने एवं उसकी खुले दिल से प्रशंसा करने के लिये मै वास्तव में तहे दिल से आभारी हूँ ।
अपनों से ज़िस स्नेह एवं प्यार की कमी अक्सर जीवन मे खलती है उसकी कुछ पूर्ति आप कर देते हैं तो अच्छा लगता है।
पुन: धन्यवाद
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