मैने तुम से कब कहा कि तुम हो सनम बेवफा
क्यों सुना रहे हो फिर मजबूरियों की दास्ताँ
पर ये भी कोई यार का यार से मिलना हुआ
एक इक कदम आगे बढ़ा तो दूजा दो पीछे हुआ
काफी था राहों में मिलना घर बुला के क्या हुआ
घर में भी जब तू मिला तो फासले रख के मिला
जिस्मो का स्पर्श तो मानो अनहोनी बात थी
हाथों को हाथ छू गया तो भी तुझे हुआ गिला
दूरीयां कायम रही और रात सारी कट गई
किस कदर तहजीब से इक यार यार से मिला
पर कौन मानेगा मेरी कि फासले कायम रहे
जो घर में तेरी चूडी का टूटा हुआ टुकडा मिला
पास रह के इतनी दूरी और अब मुमकिन नहीं
इतनी दूरी रखनी है तो फिर तूँ दूर ही भला
बातों से बात बनने वाली है नही मेरे हजूर
प्यार है तो प्यार कर या खत्म कर ये सिलसिला
क्यों सुना रहे हो फिर मजबूरियों की दास्ताँ
पर ये भी कोई यार का यार से मिलना हुआ
एक इक कदम आगे बढ़ा तो दूजा दो पीछे हुआ
काफी था राहों में मिलना घर बुला के क्या हुआ
घर में भी जब तू मिला तो फासले रख के मिला
जिस्मो का स्पर्श तो मानो अनहोनी बात थी
हाथों को हाथ छू गया तो भी तुझे हुआ गिला
दूरीयां कायम रही और रात सारी कट गई
किस कदर तहजीब से इक यार यार से मिला
पर कौन मानेगा मेरी कि फासले कायम रहे
जो घर में तेरी चूडी का टूटा हुआ टुकडा मिला
पास रह के इतनी दूरी और अब मुमकिन नहीं
इतनी दूरी रखनी है तो फिर तूँ दूर ही भला
बातों से बात बनने वाली है नही मेरे हजूर
प्यार है तो प्यार कर या खत्म कर ये सिलसिला
4 comments:
बहुत ही अच्छी गजल एक अलग अन्दाज में खास कर ये दो शेर
दूरीयां कायम रही और रात सारी कट गई
किस कदर तहजीब से इक यार यार से मिला
पर कौन मानेगा मेरी कि फासले कायम रहे
जो घर में तेरी चूडी का टूटा हुआ टुकडा मिला
शुक्रिया अन्जली जी गज़ल को पसन्द करने के लिये
बेहतरीन गजल!!
shukriya udan tashtri ji
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