Sunday, April 6, 2008

बिन बात किये ही हर एक बात खत्म हो गयी

बिन बात किये ही हर एक बात खत्म हो गयी
 दिन कभी कम पड़ गया कभी रात खत्म हो गयी
 मै ना बोल पाया कुछ तो काश तुम ही बोलती
 खामोशी के तराजू में क्यों शब्द रही तोलती
तुम भी कुछ ना कह सकी मै भी कुछ ना कह सका
 जाने क्यों दिल ने कह दिया कि बात खत्म हो गयी
 ना तो भीगा तन बदन, ना ही बुझी मन की जलन
दो चार बून्दो से कहाँ बुझती है सदियों की अग्न
तन भी प्यासा मन भी प्यासा दोनो प्यासे रह गये
  जाने क्यों मौसम कह गया बरसात खत्म हो गयी
 ना मिली नजरो से नजरें थामा ना हाथो ने हाथ
ना ठहरे संग पल दो पल ना चले दो कदम साथ
ना गिला ना शिकवा ना ही कसम ना वादा कोई
जाने क्यों वक्त ने कहा, मुलाकात खत्म हो गयी
 सदियों की इन्तजार बाद आयी मिलन की रात
 सपनो मे देखा था जिसे, बाहों मे था वो साक्षात
 दिल मे तुफाँ, होठो पे ताले, क्या कहें क्या ना कहें
हम सोचते ही रह गये और रात खत्म हो गयी
बिन बात किये ही हर एक बात खत्म हो गयी

2 comments:

Udan Tashtari said...

उम्दा भाव! बधाई..

Krishan lal "krishan" said...

shukriyaa janaab bahut bahut shukriyaa