दो चार कदम ही सही कुछ दूर संग तो चल
ता उम्र यूँ भी किसने दिया है किसीका साथ
उंगली ही पकड इतना भी सहारा है बहुत
कमबख्त कौन कहता है कि थाम मेरा हाथ
दो चार घूंट ही सही जो दे सके वो दे
मै कहाँ कहता हूँ दे भर भर मुझे गिलास
इस कदर इक उम्र से प्यासे रहें हैं हम
कूँए को पास पाके भी जगती नही अब प्यास
प्यासे की प्यास कम रही या थी बहुत अधिक
इस प्यास का कैसे कोई कर पायेगा अह्सास
बस ओस की दो चार बून्दे जीभ पर रख कर
प्यासे ने गर बुझा ली अपनी उम्र भर की प्यास
हर इक देखकर भी नहीं देखता कमबख्त
न जाने कौन शख्स की करता है दिल तलाश
सारे वफादारों से तो मिलवा चुका हूं मै
लगता है किसी बेवफा की है इसे तलाश
ता उम्र यूँ भी किसने दिया है किसीका साथ
उंगली ही पकड इतना भी सहारा है बहुत
कमबख्त कौन कहता है कि थाम मेरा हाथ
दो चार घूंट ही सही जो दे सके वो दे
मै कहाँ कहता हूँ दे भर भर मुझे गिलास
इस कदर इक उम्र से प्यासे रहें हैं हम
कूँए को पास पाके भी जगती नही अब प्यास
प्यासे की प्यास कम रही या थी बहुत अधिक
इस प्यास का कैसे कोई कर पायेगा अह्सास
बस ओस की दो चार बून्दे जीभ पर रख कर
प्यासे ने गर बुझा ली अपनी उम्र भर की प्यास
हर इक देखकर भी नहीं देखता कमबख्त
न जाने कौन शख्स की करता है दिल तलाश
सारे वफादारों से तो मिलवा चुका हूं मै
लगता है किसी बेवफा की है इसे तलाश
4 comments:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ती है
सारे वफादारों से तो मिलवा चुका हूं मै
लगता है किसी बेवफा की है इसे तलाश
बहुत सुंदर ,,
Anitaa Kumaar ji
My heart felt thanks for visiting my blog and generously expressing your response there to.
Shall always be anxiously waiting for your comments on my coming poems or ghazals or whatever you call it. Thanks
Rakshanda ji
आप जैसे व्यक्तित्व की टिप्प्णी अपने आप मे ही अतयेन्त महत्व्पूर्ण है और अगर वो प्रशंसा लिये हो तो आप खुशी का अन्दाजा नही लगा सकते आप्को ये शेर पसन्द आया मेरा लिखना सफल हो गया।
धन्यवाद
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