Friday, April 25, 2008

दिशाहीन सम्बन्धो को चलो कोई दिशा दी जाये

दिशाहीन सम्बन्धों को चलो कोई दिशा दी जाये
चारों दिशाएं खुली हैं तुम जिस और कहो ले जायें
 ये ना कहो कि वक्त पे छोड़ो जिधर बहेंगीं हवांए
 अपने आप ही चलने लगेंगी उसी ओर नौकांए
 हवा का क्या है ये तो अपना पलपल रुख बदलेगी
ऐसे में तो कभी इधर कभी उधर नाव चल देगी
 तुम ही कहो किस तरह से फिर मिलना है हमें किनारा
मिला भी तो किस काम का, जब ये जन्म बीत गया सारा
 मत खोलो तुम पाल, ना हों, जब तक अनूकूल हवायें
 पर इतना तो तय हो , कि हम कौन दिशा अपनाये
 धरे हाथ पे हाथ बैठना वक्त का बस करना इन्तज़ार
ये तो समझो लड़ने से फिर पहले ही गये बाज़ी हार
 हाथ में हो पतवार और मन मे हो थोड़ी हिम्मत
जो भी मंजिल फिर चाहो, कश्ती खुद तुम को पहुंचाए

5 comments:

rakhshanda said...

बहुत सुंदर और अहसास को जगाती हुयी,
नज्म का उनवान(शीर्षक)सही कर लीजिये..

Krishan lal "krishan" said...

Rakshanda ji
आप्का बहुत बहुत शुक्रिया नज्म को पस्न्द करने के लिये
शीर्षक मे गल्ती ठीक कर दी है आप्का धन्यवाद इस और धयान दिलाने के लिये

Alpana Verma said...

''दिशाहीन सम्बन्धो को चलो कोई दिशा दी जाये"

बहुत सुंदर

Krishan lal "krishan" said...

Alpanaa ji
aapkaa bahut bahut shukriyaa is rachanaa ko pasand karane ke liye. kripyaa blaag par aate rahe yakeen maniye achchhaa lagaega. kabhi kabhi to aapki nayaab TippNii kaa intajaar bhii rahtaa hai

Krishan lal "krishan" said...

Alpanaa ji
aapkaa bahut bahut shukriyaa is rachanaa ko pasand karane ke liye. kripyaa blaag par aate rahe yakeen maniye achchhaa lagaega. kabhi kabhi to aapki nayaab TippNii kaa intajaar bhii rahtaa hai