Monday, April 21, 2008

प्यार इक तरफा कब तक करेंगें भला

प्यार इकतरफा कब तक करेंगें भला
प्यार वो भी तो आके जतायें हमे
 करना है तो करें कोई हम पे करम
 झूठे वादों से वो ना बहलायें हमें
 हमको मालूम है,जब कहानी का अन्त
 झूठे सपने कोई क्यों दिखाये हमें
 प्यार करने को जो मन नहीं,ना सही
झूठी मजबूरीयां ना बताये हमें
 दिल से लिखी है मैने कविता तो फिर
 उसपे कुछ तो असर नजर आये हमें
 या कहे बात मेरी समझ सब गया
या कैसी लिखूँ गजल समझाये हमें
 है कसम अब कविता ना लिखेंगें हम
 जबतक 'वो' लिखने को कह ना जाये हमें

3 comments:

नीरज गोस्वामी said...

एक तरफा प्यार तो इबादत कहलाता है...
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आप ने. बधाई.
नीरज

Krishan lal "krishan" said...

नीरज जी
पहले तो ये बताईये क्या हाल चाल है इतने दिन कहाँ रहे स्वस्थय कैसा है
यकीन मानिये आप की टिप्प्णियों के लिये हमारे दिल मे एक अलग ही स्थान है अक्सर नही तो कभी कभी हि सही आते रहा कीजिये
धन्यवाद गजल को पसन्द करने के लिये

Keerti Vaidya said...

प्यार करने को जो मन नहीं,ना सही
झूठी मजबूरीयां ना बताये हमें

sahi farmaya apney.....aksar log jhooti majburiyo kechadder odhe door bahgtey hai