कत्ल करने का इरादा ही नही रखता अगर
आस्तीनॊ मे तू खन्जर को छुपाता क्यों हॆ
दर्द को राज ही रखने की जो खाई हॆ कस्म
आख मे आंसू का कतरा कोई आता क्यों हॆ
प्यार हॆ तुझको तो फिर आके गले लगजा मेरे
प्यार हॆ प्यार हॆ कह कह के सताता क्यों हॆ
तू मेरा दोस्त हॆ माना मगर इतना तो बता
मेरे रकीबों से तूं रखता कोई नाता क्यों हॆ
अब यहां कॊन तेरे दर्द मे होगा हमदर्द
किस्से तु गम के किसीको भी सुनाता क्यों हॆ
सबके हाथों में हॆ नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ
मॆं जहां पहुचा हूं इक बार वहां आके तो देख
सब्र के पाठ मुझे यूं ही पढाता क्यों हॆ
आस्तीनॊ मे तू खन्जर को छुपाता क्यों हॆ
दर्द को राज ही रखने की जो खाई हॆ कस्म
आख मे आंसू का कतरा कोई आता क्यों हॆ
प्यार हॆ तुझको तो फिर आके गले लगजा मेरे
प्यार हॆ प्यार हॆ कह कह के सताता क्यों हॆ
तू मेरा दोस्त हॆ माना मगर इतना तो बता
मेरे रकीबों से तूं रखता कोई नाता क्यों हॆ
अब यहां कॊन तेरे दर्द मे होगा हमदर्द
किस्से तु गम के किसीको भी सुनाता क्यों हॆ
सबके हाथों में हॆ नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ
मॆं जहां पहुचा हूं इक बार वहां आके तो देख
सब्र के पाठ मुझे यूं ही पढाता क्यों हॆ
7 comments:
सबके हाथों में नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ
मॆं जहां पहुचा हूं इक बार वहां आके तो देख
सब्र के पाठ मुझे यूं ही पढाता क्यों हॆ
waah ...kya baaat hai
मन्विन्देर जी
आपका बहुत बहुत शुक्रिया रचना को पढने ऒर प्रोत्साहित करने के लिये
सबके हाथों में नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ
बहुत उम्दा रचना!! बधाई.
samIr ji
bahut bahut shukriya post ko padhne aur utsah badhane ke liye
बहुत दिनों बाद इतनी बेहतरीन गजल पढ़ने के मिली। एक-एक शेर लाजवाब लगा, ये और भी खास-
अब यहां कॊन तेरे दर्द मे होगा हमदर्द
किस्से तु गम के किसीको भी सुनाता क्यों हॆ
सबके हाथों में हॆ नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ
जितेन्द्र भगत जी
बहुत बहुत शुक्रिया गज़ल की दिल खोल कर तारीफ करने के लिये
bahot hi sundar ghazal likhi hai aapne wah bahot bahot badhai aapko swakaren,,...
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