Tuesday, November 4, 2008

कत्ल करने का इरादा ही नहीं रखता अगर

कत्ल करने का इरादा ही नही रखता अगर
 आस्तीनॊ मे तू खन्जर को छुपाता क्यों हॆ
 दर्द को राज ही रखने की जो खाई हॆ कस्म
 आख मे आंसू का कतरा कोई आता क्यों हॆ
 प्यार हॆ तुझको तो फिर आके गले लगजा मेरे
 प्यार हॆ प्यार हॆ कह कह के सताता क्यों हॆ
 तू मेरा दोस्त हॆ माना मगर इतना तो बता
 मेरे रकीबों से तूं रखता कोई नाता क्यों हॆ
अब यहां कॊन तेरे दर्द मे होगा हमदर्द
किस्से तु गम के किसीको भी सुनाता क्यों हॆ
सबके हाथों में हॆ नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ
 मॆं जहां पहुचा हूं इक बार वहां आके तो देख
सब्र के पाठ मुझे यूं ही पढाता क्यों हॆ

7 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

सबके हाथों में नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ
मॆं जहां पहुचा हूं इक बार वहां आके तो देख
सब्र के पाठ मुझे यूं ही पढाता क्यों हॆ
waah ...kya baaat hai

Krishan lal "krishan" said...

मन्विन्देर जी
आपका बहुत बहुत शुक्रिया रचना को पढने ऒर प्रोत्साहित करने के लिये

Udan Tashtari said...

सबके हाथों में नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ


बहुत उम्दा रचना!! बधाई.

Krishan lal "krishan" said...

samIr ji
bahut bahut shukriya post ko padhne aur utsah badhane ke liye

जितेन्द़ भगत said...

बहुत दि‍नों बाद इतनी बेहतरीन गजल पढ़ने के मि‍ली। एक-एक शेर लाजवाब लगा, ये और भी खास-
अब यहां कॊन तेरे दर्द मे होगा हमदर्द
किस्से तु गम के किसीको भी सुनाता क्यों हॆ
सबके हाथों में हॆ नश्तर नहीं मरहम कोई
जख्म तू खोल के इन सब को दिखाता क्यों हॆ

Krishan lal "krishan" said...

जितेन्द्र भगत जी
बहुत बहुत शुक्रिया गज़ल की दिल खोल कर तारीफ करने के लिये

"अर्श" said...

bahot hi sundar ghazal likhi hai aapne wah bahot bahot badhai aapko swakaren,,...