Thursday, November 6, 2008

खाली पॆमाने की तरह यूं ना ठुकरा तूं हमें

इस तरह हिम्मत ना हारो राह बाकी हॆ अभी
 ये तो पडाव हॆ कहां मन्जिल पे पहुचे हॆं अभी
 इस तरह थक हार कर हॊंसला क्या छोडना
मंजिल दिखाई दी तो हॆ मंजिल मिली कहां अभी
आस्मां तक पहुंचने की हमने खाई थी कसम
पांव तले जमीन भी नहीं ठीक से आई अभी
खाली पॆमाने की तरह यूं ना ठुकरा तू हमे
काम आऊंगा लगेगी प्यास तुझको फिर कभी

5 comments:

"अर्श" said...

bahot hi sundar likha hai aapne bahot khub,aapko dhero badhai ,

रंजना said...

Waah ! bahut sundar rachna.

makrand said...

bahut acchi rachana

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया!!

Vinay said...

आप कभी मेरे ब्लाग पर आयें, आपसे तजुर्बेकार से अपनी रचनाओं के विषय में कुछ टिप्पणी चाहूँगा!