Wednesday, May 27, 2009

और भी हुस्न वाले है तू ही नहीं

तेरे दिल मे भी हैं तेरे कदमो मे भी
जाने क्यो हम नजर तुझ को आते नहीं
दूरी हर सुबह ओ शाम और भी बढ गयी
आप चलते नहीं हम ठहर पाते नहीं
याद तो हम तुम्हें करते हैं रात दिन
जाने क्यों पर तुम्हे हम बताते नही
आप कितना चले किस दिशा मे चले
हिसाब क्यों तुम खुद ही लगाते नहीं
दोस्त हैं कि कहे बिन समझते नही
हम है कि जो कुछ कह पाते नहीं
कहने को तो बहुत था मेरे पास भी
तुम समझते नहीं हम समझा पाते नहीं
तेरी हां से खुशी जब से होती नहीं
तेरी ना से हम तबसे घबराते नहीं
हैं और भी हुस्न वाले एक तू ही नही
ये कह के कीमत तेरी हम घटाते नही
तू भी तो ये समझ हम से चाहने वाले
रोज़ महफिल मे तेरी यूं आते नहीं

2 comments:

अनिल कान्त said...

हुस्न की तो हर अदा निराली होती है

Kulwant Happy said...

हैं और भी हुस्न वाले एक तू ही नही
ये कह के कीमत तेरी हम घटाते नही

तू भी तो ये समझ हम से चाहने वाले
रोज़ महफिल मे तेरी यूं आते नहीं

एकदम जोरदार कहा आपने