Tuesday, December 8, 2009

चाह कर भी दूरीयां दोनों नही मिटा सके

चाह कर भी दूरीयां दोनों नही मिटा सके
हम भी ठहरे रह गए तुम भी ना चल के आ सके

 उलझन सुलझने की जगह और उलझती गयी
 कुछ तुम से ना सुलझ सकी कुछ हम नही सुलझा सके

 सब कुछ समझ के भी ना इक दूजे को कुछ समझ सके
 कुछ तुम नहीं समझ सके कुछ हम नही समझा सके

 बात बिगड़ी थी तो बन भी सकती थी चाहते अगर
 तुम ने भी चाहा नही  हम भी नहीं बना सके

 लौट कर पक्षी घरौंदे की तरफ सब चल दिए
 कुछ ऎसी राह भटके लौट कर ना वापिस आ सके

तेरे मिटाने से नहीं मिटना मेरा नामो निशां
इस हस्ती को तो नाम वाले भी नहीं मिटा सके

1 comment:

रंजना said...

LAJAWAAB BHAAV ...LAAJAWAAB LAY!!

BAHUT HI SUNDAR RACHNA....