Friday, March 5, 2010

जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नहीं मै कह सकता

जो यार के काम ना आये कभी उसे यार नही मै कह सकता

जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नही मै कह सकता

सह सकता हूँ दुःख गम या तकलीफ चाहे जितनी भी हो

बस खुशी मुझे कोई दे जाए तो थोड़ी भी नही सह सकता

जुबां पे कुछ और दिल में कुछ ये रीत है दुनिया वालो की

लो तुम ही सम्भालो ये दुनिया मै तो इसमें नही रह सकता

या तो खुल के जी लेने दो या फिर महफ़िल से जाने दो

महफिल की रस्में निभाने को मैं तो जीना नहीं कह सकता

मुझको तो उड़ने के लिए आकाश भी छोटा पड़ता है

पिंजरे के पंछी की तरह मैं दायरों में नही रह सकता

प्यार वफा चाहत अपनापन जो चाहो नाम दो तुम इसको

बात सिर्फ इतनी है उस बिन दो पल भी नही रह सकता

है हिम्मत तो आ हाथ थाम नही हिम्मत तो फिर घर में बैठ

बुजदिल के हाथ में हाथ किसीका ज्यादा देर नही रह सकता

मैं ज़िंदा हूँ विपरीत दिशा बहने की ताकत रखता हूँ

मुर्दा मछली सा पानी के संग साथ साथ नहीं बह सकता

3 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी लगी आपकी रचना धन्यवाद।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

Jaat Ki Jaan said...

बहुत खूब!!