Saturday, March 6, 2010

जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना

हसरत मार के जीना है तो तेरा साथ भी क्या करना
खुद भी परेशां क्या होना,तुझ को भी परेशां क्या करना

दामन फटा ही रहना है तो रफुगर कोई मिला ना मिला
जब चाक गरेबां सीना नहीं तो सुई या धागा क्या करना

बून्द बून्द को तरसा दे उस जल के स्त्रोत से क्या हासिल
वो नदिया हो या दरिया हो नलकूप हो या फिर हो झरना

कभी होंठ तलक भी भीगे नहीं तो दिल की प्यास बुझेगी कब
जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना

ना तो मन्जिल ही दिखती है ना राह नज़र आती है कोई
ऐसे नाकाम सफर मे यारा तुझको शामिल क्या करना

2 comments:

निर्झर'नीर said...

कभी होंठ तलक भी भीगे नहीं तो दिल की प्यास बुझेगी कब
जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना

ना तो मन्जिल ही दिखती है ना राह नज़र आती है कोई
ऐसे नाकाम सफर मे यारा तुझको शामिल क्या करना

wahhhhhhhhh kya gahri baat kahi hai
javab nahi ...laajavab

daad hazir hai9 janab kubool karen

Krishan lal "krishan" said...

Nirjhar jii aap ke utsaahvardhak comments ke liye bahut bahut shukriya