Wednesday, February 23, 2011

यार से मतलब है हम को यार से ही वास्ता

जीने कीकुछ वजह नहीं लेकिन है ये भी सच सनम
कोई बहाना चाहिए जाने के लिए संसार से

 प्यार में तो चेहरा खुशगवार होना चाहिए
फिर तुम नज़र आते हो क्यों बेजार से बीमार से

 जिनको तलाश है वो जा के ढूंढ़ ले अपना खुदा
हमको तो गरज है सिर्फ यार के दीदार से

 उनको देखे से  था चेहरा खुशग्वार हो उठा 
  वो समझ बैठे कि हम झूठ में बीमार थे 

 थे यार से मतलब है हम को यार से ही वास्ता
 ना खुदा से लेना कुछ ना लेना कुछ घरबार से

हौले हौले परत दर परत पर्दा उठना लाजिमी था
पर यार की जिद है कि हर पर्दा उठे रफ्तार से

2 comments:

Unknown said...

आदरणीय श्री कृष्ण लाल ‘कृष्ण’ जी,
सादर प्रणाम|

नैट पर कुछ ढूँढ रहा था कि ढूँढते ढूँढते आपके ब्लॉग पर आ पहुँचा| आपकी अनेक रचनाएँ पढी हैं और अनेक को सरसरी नजर से देखा है| समय मिलने पर सुकून से पढॅूंगा, लेकिन आपके लेखन को सराहे बिना नहीं रह सका, सो आपको साधुवाद ज्ञापित करता हँ|
आशा है कि आपकी अनुभवों पर आधारित और मानवीय संवेदनाओं के धरातल से जुड़ी गजलें लगातार पढने को मिलती रहेंगी|

शुभकामनाओं सहित|
सादर-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

Krishan lal "krishan" said...

Dr. Puroshotam Meenaa Nirakush ji aapkaa bahut bahut dhanywaad ghazlo ko padhne aur sarahaane ke liye . Aasha hai aap phir is blog par aate rahenge aur honsla badhaate rahenge.