कल तक थे अपने, आज बेगाने नज़र आने लगे
चेहरे जाने पहचाने से ,अनजाने नज़र आने लगे
वक्त ने ली कैसी करवट देखते ही देखते
कभी ढूंढते थे जो हमें वो हम से कतराने लगे
कुछ भी तो बदला नही पर कुछ तो बदला है ज़रूर
जिनको समझाते थे हम वो हम को समझाने लगे
आकाश सारा छाना न खाना न ठिकाना मिला
थक हार के परिन्दे वापिस घर को है जाने लगे
धरती को प्यासा रखने की बादलों ने खायी है कसम
आसमान पे किस लिए बादल हैं फिर छाने लगे
पूछा वजह है क्या भला ऐसा करने की हज़ूर
इधर उधर की बात कर वो मुझ को बहकाने लगे
मानने को मान भी लेता तेरी हर बात मैं
पर तुम तो उंगली के इशारों पे ही नचाने लगे
चाँद अब तो निकला है पर जाने कब छुप जाएगा
नादान बन कर क्यों दीया, तुम घर का बुझाने लगे
वैसे भी तो ऎसी महफ़िल से हासिल क्या होना है
जिसका साकी बूँद बूँद को भी तारसाने लगे
घर का दरवाज़ा कभी इतना खुला ना छोड़िये
दोस्ती की आड़ में दुश्मन ना घर आने लगे
रस के प्यासे भँवरे की बदनसीबी देखिये
फूलों की जगह चमन में कांटे उग आने लगे
चेहरे जाने पहचाने से ,अनजाने नज़र आने लगे
वक्त ने ली कैसी करवट देखते ही देखते
कभी ढूंढते थे जो हमें वो हम से कतराने लगे
कुछ भी तो बदला नही पर कुछ तो बदला है ज़रूर
जिनको समझाते थे हम वो हम को समझाने लगे
आकाश सारा छाना न खाना न ठिकाना मिला
थक हार के परिन्दे वापिस घर को है जाने लगे
धरती को प्यासा रखने की बादलों ने खायी है कसम
आसमान पे किस लिए बादल हैं फिर छाने लगे
पूछा वजह है क्या भला ऐसा करने की हज़ूर
इधर उधर की बात कर वो मुझ को बहकाने लगे
मानने को मान भी लेता तेरी हर बात मैं
पर तुम तो उंगली के इशारों पे ही नचाने लगे
चाँद अब तो निकला है पर जाने कब छुप जाएगा
नादान बन कर क्यों दीया, तुम घर का बुझाने लगे
वैसे भी तो ऎसी महफ़िल से हासिल क्या होना है
जिसका साकी बूँद बूँद को भी तारसाने लगे
घर का दरवाज़ा कभी इतना खुला ना छोड़िये
दोस्ती की आड़ में दुश्मन ना घर आने लगे
रस के प्यासे भँवरे की बदनसीबी देखिये
फूलों की जगह चमन में कांटे उग आने लगे
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