Friday, March 10, 2017

होना है आखिर वही , जो नियती को मंजूर है

किस मोड़ पर लाकर खड़ा किया है तूने ज़िंदगी
अपनी ज़मीन भी खो गयी और आसमाँ  भी दूर है

कसमसाने के सिवा कुछ और कर सकता नही
आदमी किस्मत के हाथों किस कदर मज़बूर है

इश्क के बाजार में कुछ तो मिला है हुस्न को
बेवज़ह कहाँ  हुस्न के  चेहरे पे आता नूर है

कसमसाता , फड़फड़ाता छटपटाता   रह गया
हालात के पिंजरे का पंछी किस तरह मज़बूर है

काम के बदले में काम और चीज़ के बदले में दाम
प्यार का नही ये तो व्यापार का दस्तूर है

कामयाबीया नही मिलती बिना नसीब के
अक्ल या  पैसा  तो सबके  पास ही  भरपूर है

जिंदगी की जब भी मैंने की  समीक्षा  पाया ये
ज़िन्दगी और  कुछ नही,  इक बेवफा सी हूर है

लाख कोशिशें तू कर लाख तू चक्कर चला
होना है आखिर वही , जो नियती को मंजूर  है


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