Wednesday, March 15, 2017

झूठ मूठ का गले लगे लो मन गए सब त्यौहार

मुँह  देखे की यारी रह गयी मुंह देखे का प्यार
नाम के रह गए सारे रिश्ते बिखरे बिखरे परिवार

खून के रिश्ते पानी हो गए  मुंहबोले रिश्तों ने मुंह फेरा
पल पल रंग बदलता रिश्ता तेरा हो या मेरा

लेने वाला रिश्ता  हैं सब  रखने को तैयार
देने वाला रिश्ता सब को  लगने लगा है भार

रस्मी तौर पर मिली बधाई, बेमन से मिले उपहार
झूठ मूठ का  गले लगे, लो मन गए सब त्यौहार

दिल से अब जज्बात नही बस जुबां  से शब्द निकलते हैं
अब तो चमन में बिना महक के फूल ही अक्सर खिलते हैं

जो नही मिला है उसका गिला  जो मिला है उसको भूले
गिरा हुआ ही मानो उसे,  वो चाहे कितनी ऊंचाई  छू ले

तुम ही कहो फिर और कहाँ से दे तुमको भगवान्
दिया था जो भी,   कौन सा उसका मान लिया अहसान

मैं  तो अपनी कहता हूँ तू मान मेरी  ना  मान
जानवर से भी बदतर है जो भूल जाये अहसान


  

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