Monday, January 1, 2018

अक्ल यहाँ आती है सबको खुद ही ठोकर खाने से

अक्ल यहाँ आती है सबको खुद ही ठोकर  खाने से
कहाँ समझता है कोई यूँ औरो के समझाने से

शमा की फितरत है जलाना परवाने को भी है पता
फिर भी बाज़ नहीं आता शमा को गले लगाने से

बरसेगा तो बीज खेत में  बोने  की भी सोचेंगे
 कुछ अंदाज़ नहीं लगता बदली के सिर्फ छा  जाने से

बूँद बूँद को तरसा  डाला तूने मय  के प्यासे को
वरना चाहता कौन था उठकर जाना तेरे मयखाने से

मिले बिना कभी तुझसे मुझको पल भर चैन ना आता था
फर्क नहीं क्यों पड़ता अब तेरे आने या ना आने से

हम को मतलब  मय से है या फिर तेरी आँखों से है
फर्क नहीं पड़ता हम को  किसी मीना  या पैमाने से

मै   तेरा दीवाना हूँ खुद को खो कर तुझे पाया है
रोक ना यारा खुद को अब  बाँहों में मेरी आने से

भरा पड़ा है  जिसका खजाना दुनिया भर की दौलत से
आज वो भी डरता फिरता है चंद  सिक्के  लूटने लुटाने से






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