Thursday, January 4, 2018

ये किस मोड़ पर आ गयी ज़िंदगी

ये किस मोड़ पर आ गयी ज़िंदगी
ना पाने  को कुछ है ना खोने को ही

कर के हिम्मत फसल जब भी बोई है मैंने
या तो पाला पड़ा या गिरी बिजलियाँ
खेत खलिहान की क्यों मै  बातें करूँ
ना काटने को है कुछ  ना बोने  को ही

तू ख़्वाबों में आती तो रंगीन रात  होती
हकीकत  में मिलती तो क्या बात होती
ना ख़्वाबों में आती ना दिन में ही मिलती
ना जागने को है कुछ न सोने को ही

ना आँखों में आंसू बचा है कोई
ना चेहरे पे ही है हंसी की लहर
छोड़ कर  तुम गए ऐसे अंदाज़ से
ना हंसने को कुछ है ना रोने को ही

बेवफा गर कहूं तो बुरी बात है
और  वफादार कहने को माने ना दिल
ऐसा धोखा दिया है तूने  प्यार में
कोसूँ इश्क  होने को भी ना होने को भी

जोड़ कर तिनका तिनका बनाया था घर
एक आंधी क्या आयी गया सब बिखर
आसमां  अब है छत तो ज़मीं है बिस्तर
ना ओढ़ने को कुछ ना बिछोने को ही

 ये किस मोड़ पर आ गयी ज़िंदगी
ना पाने  को कुछ है ना खोने को ही



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