रिश्ता ऐसा बना तुझसे ए जानेमन
ना तो जुड़ ही सका न हमसे तोडा गया
यूँ लहराया हवा में तेरा दामन सदा
न हमसे पकड़ा गया न हमसे छोड़ा गया
तेरे दर तक जो आता था वो रस्ता अज़ब
ना हम से तय हो सका न हम से मोड़ा गया
यूँ तो तेरी ही जानिब बढ़ा हर कदम
पर न रुक ही सके न हम से दौड़ा गया
घर बनाया तो था शौक से हमने भी
पर सलीके से कुछ भी न जोड़ा गया
नींव कमज़ोर थी बचता घर किस तरह
हिली धरती कहीं ईंट कहीं रोड़ा गया
हारने पे कोई युद्ध ना पूछो कभी
सवार है कहाँ कहाँ घोडा गया
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