Wednesday, March 12, 2008

सब के हाथों मे पत्थर है और निशाने पे मेरा दिल

अपने उसूलो पे जी पाना इतना भी आसान नहीं
सबसे अलग पहचान बनाना इतना भी आसान नहीं
 बनी बनाई राह पे चलना कौन काम है मुश्किल का
अपनी राहें खुद ही बनाना इतना भी आसान नहीं
 जिसके मन सी नहीं कर सका वो ही हमसे दूर हो गया
 सब के बीच तन्हा जी पाना इतना भी आसान नहीं
 आप ही जगना आप ही सोना आप ओढ़ना आप बिछौना
 आप ही पाना आप ही खोना आप ही हंसना आप ही रोना
 हर आँसू को अकेले पीना तुम क्या जानो कितना मुश्किल
 खुद को तसल्ली खुद दे पाना इतना भी आसान नहीं
 पड़ी जरूरत मदद की जब भी खुद को दे आवाज बुलाया
खुद के लिये खुदा बन जाना इतना भी आसान नहीं
 इसके ताने उसके उल्हाने कैसे सहे सब तूँ क्या जाने
 पर लब पे तेरा नाम ना लाना इतना भी आसान नहीं
 गम को छुपा औरो संग हंसना अपने आप मे है मुश्किल
 पर अपने आँसू खुद से छुपाना इतना भी आसान नहीं
 आँख छलक आई मेरी तो इतने क्यों हैरान हो तुम
इन्सां के लिये पत्थर बन जाना इतना भी आसान नहीं
 सब के हाथों मे पत्थर है और निशाने पे मेरा दिल
 ऐसे मे इस दिल को बचाना इतना भी आसान नहीं

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।

बनी बनाई राह पे चलना कौन काम है मुश्किल का
अपनी राहें खुद ही बनाना इतना भी आसान नहीं

Krishan lal "krishan" said...

परमजीत बाली जी
शुक्रिया रचना को पढ़ने और सरहाने के लिये

ghughutibasuti said...

आपने बहुत सुन्दर व भावनापूर्ण रचना लिखी है ।
घुघूती बासूती

Krishan lal "krishan" said...

घुघूती बासूती जी
आपकी सुन्दर एवं भावपूर्ण टिप्पणी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद

प्रशांत तिवारी said...

बहुत बढिया सर जी दिल को छु लेने वाली रचना है

Krishan lal "krishan" said...

प्रशांत तिवारी जी
कोई रचना किसी के दिल को छू ले इस से बेहतर टिप्पणी रचनाकार के लिये क्या हो सकती है। वल्तुत: इस से आप की संवेदन शीलता का और सहृदयता का पता चलता है। आप का बहुत बहुत शुक्रिया