तेरे शहर मे कैसे कैसे भरे हुए हैं लोग
इक चेहरे पे कई कई चेहरे धरे हुए हैं लोग
आतंकित है आशंकित है सहमे है घबराये है
हर आहट पे चौंक उठते हैं कितना डरे हुये हैं लोग
साँसों के आने जाने से बस तन को जिन्दा रखा है
वरना चेहरे बतलाते हैं कि मन से मरे हुए हैं लोग
हंसने की कोशिश में अक्सर आँख छलक आती है
इनकी एक लबालब प्याले जैसे गम से भरे हुए है लोग
मन की बात कभी भी इनके होठों पर नही आ पाती
गैरों से क्या अपनो से भी कितना डरे हुए है लोग
इस शहर मे तेरी उलझन कोई क्या समझे क्या सुलझाये
हर वक्त तो अपनी ही कोई उलझन से घिरे हुए हैं लोग
जाने कौन है मन्जिल इनकी जाने कहाँ पहुँचना है
जब देखो तब सर पे अपने पाँव धरे हुए है लोग
मन में कोई उत्साह नहीं जीने की कोई चाह नहीं
अपनी लाश को अपने ही कन्धो पे धरे हुए है लोग
तेरे शहर का जीना आखिर मुझ को कैसे रास आये
यहाँ अन्दर से सब हुए ठूँठ बाहर से हरे हुए है लोग
इक चेहरे पे कई कई चेहरे धरे हुए हैं लोग
आतंकित है आशंकित है सहमे है घबराये है
हर आहट पे चौंक उठते हैं कितना डरे हुये हैं लोग
साँसों के आने जाने से बस तन को जिन्दा रखा है
वरना चेहरे बतलाते हैं कि मन से मरे हुए हैं लोग
हंसने की कोशिश में अक्सर आँख छलक आती है
इनकी एक लबालब प्याले जैसे गम से भरे हुए है लोग
मन की बात कभी भी इनके होठों पर नही आ पाती
गैरों से क्या अपनो से भी कितना डरे हुए है लोग
इस शहर मे तेरी उलझन कोई क्या समझे क्या सुलझाये
हर वक्त तो अपनी ही कोई उलझन से घिरे हुए हैं लोग
जाने कौन है मन्जिल इनकी जाने कहाँ पहुँचना है
जब देखो तब सर पे अपने पाँव धरे हुए है लोग
मन में कोई उत्साह नहीं जीने की कोई चाह नहीं
अपनी लाश को अपने ही कन्धो पे धरे हुए है लोग
तेरे शहर का जीना आखिर मुझ को कैसे रास आये
यहाँ अन्दर से सब हुए ठूँठ बाहर से हरे हुए है लोग
6 comments:
सुन्दर भाव पूर्ण गजल लिखी है आपने... यही सत्य है....
तेरे शहर का जीना आखिर मुझ को कैसे रास आये
यहाँ अन्दर से सब हुए ठूँठ बाहर से हरे हुए है लोग
आतंकित है आशंकित है सहमे है घबराये है
हर आहट पे चौंक उठते हैं कितना डरे हुये हैं लोग
तेरे शहर मे कैसे कैसे भरे हुए हैं लोग
shahar ki pida ko kya khoob vyakt kiya hai aapne !!
यहाँ अन्दर से सब हुए ठूँठ बाहर से हरे हुए है लोग...
वाह !
मोहिन्देर कुमार जी, अमिताभ फौजदार जी, और अभिषेक ओझा जी
आप सब का हृदय से आभारी हूँ कृप्या अप्ना स्नेह बनाये रखें और इसी तरह प्रोत्साहित करते रहें पुन: धन्यवाद
मन में कोई उत्साह नहीं जीने की कोई चाह नहीं
अपनी लाश को अपने ही कन्धो पे धरे हुए है लोग
अतुल जी,
आपने गज़्ल का एक शेर दोहराया तो है परन्तु अपने कमेन्टस नही दिये जिससे ये पता चल सके कि आपको शेर पसन्द आया या नही और अगर आया तो कितना
Post a Comment